Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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350/प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य
उपाश्रयों में रहने से लगने वाले दोष और प्रायश्चित्त इसी प्रकार मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी प्रतिमायुक्त वसति में ठहरने से लगने वाले दोष और तद्विषयक प्रायश्चित्त विधि, उपहास आदि करने वाले के लिए प्रायश्चित्त विधि, साधु-साध्वियों के आपसी झगड़े को निपटाने की विधि, मार्ग में अन्न-जल प्राप्त न होने पर उसकी प्राप्ति की विधि, उत्सर्गरूप से रात्रि में संस्तारक, वसति आदि ग्रहण से लगने वाले दोष और प्रायश्चित्त, रात्रि में वसति आदि ग्रहण करने की आपवादिक विधि, गीतार्थ निर्ग्रन्थों के लिए वसति-ग्रहण की विधि, अगीतार्थ मिश्रित गीतार्थ निर्ग्रन्थों के लिए वसति-ग्रहण की विधि, अंधेरे में वसति की प्रतिलेखना के लिए प्रकाश का उपयोग करने की विधि, ग्रामादि के बाहर वसति ग्रहण करने के लिए यतनाएँ, रात्रि में वस्त्रादि ग्रहण करने से लगने वाले दोष एवं प्रायश्चित्त, संयतभद्र-गृहिप्रान्त चोर द्वारा लूटे गये गृहस्थ को वस्त्रादि देने की विधि, गृहिभद्र-संयत प्रान्त चोर द्वारा श्रमण और श्रमणी इन दो में से कोई एक लूट लिया गया हो तो परस्पर वस्त्र आदान-प्रदान करने की विधि, श्रमण-गृहस्थ, श्रमण-श्रमणी, समनोज्ञ- अनामोज्ञ अथवा संविग्न-असंविग्न ये दोनों पक्ष लट लिये गये हों तो उस समय एक-दूसरे को वस्त्र आदान-प्रदान करने की विधि, प्रसंगवशात् मार्ग में आचार्य को गुप्त रखने की विधि, आपवादिक रूप से रात्रि के समय पंचगमन करने के लिए सार्थवाह से अनुज्ञा लेने की विधि, संखड़ि में जाने से लगने वाले दोष और प्रायश्चित्त विधि, रात्रि के समय निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी को विहारभूमि- नीहार भूमि में अकेले जाने का प्रसंग बने तो विविध प्रकार की यतनाविधि' आदि के उल्लेख है। द्वितीय उद्देशक - इस उद्देशक में उल्लिखित विधान ये हैं- वसति के एक अथवा अनेक सागारिकों के आहार आदि के त्याग की विधि, दूसरों के यहाँ से आने वाली भोजन-सामग्री का दान करने वाले सागारिक और ग्रहण करने वाले श्रमण की कर्त्तव्य विधि, पाँच प्रकार के वस्त्र जाडिंक, भाडिंक, सानक पोतक और तिरीड पट्टक का स्वरूप, संख्या एवं इस उपधि के परिभोग की विधि, पाँच प्रकार के रजोहरण-और्णिक, औष्ट्रिक, सानक, वच्चकचिप्पक और मुंजचिप्पक का स्वरूप कारण, क्रम और उनके ग्रहण करने की विधि। तृतीय उद्देशक - यह उद्देशक अग्रलिखित विधि-विधान की चर्चा करता है। किसी कारण से निर्ग्रन्थ को निर्ग्रन्थियों के उपाश्रय में प्रवेश करने का प्रसंग उपस्थित हो जाये तो तद्विषयक आज्ञा एवं उसकी विधि, वर्ण-प्रमाणादि से रहित चर्म के उपभोग और संग्रह का विधान, अभिन्न वस्त्र के ग्रहण करने की विधि, विभूषा के लिए उपधि
'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पर आधारित, भा-३ पृ. ११६-२१८
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