Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/335
और यह भाष्य की गाथाएँ हैं। इसमें मूलग्रन्थ के प्रत्येक पद पर व्याख्या न कर मुख्य रूप से पारिभाषिक शब्दों की व्याख्याएँ की गई है। यह व्याख्या शैली निक्षेप पद्धति परक है। निक्षेप पद्धति में किसी एक पद के सम्भावित अनेक अर्थ करने के पश्चात् उनमें से अप्रस्तुत अर्थों का निषेध कर प्रस्तुत अर्थ का ग्रहण किया जाता है। न्यायशास्त्र में यह पद्धति अत्यन्त प्रचलित रही है।
आर्यभद्र या भद्रबाहुस्वामी ने जो भी नियुक्तियाँ लिखी हैं उनमें प्रायः इस निक्षेप पद्धति को ही अपनाया है। यहाँ यह बताना अपेक्षित लग रहा है कि भद्रबाहु ने आवश्यकनियुक्ति में लिखा है कि- एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं पर कौन सा अर्थ किस प्रसंग के लिए उपयुक्त है इत्यादि को ध्यान में रखते हुए सही दृष्टि से अर्थ निर्णय करना और उस अर्थ का मूलसूत्र के शब्दों के साथ सम्बन्ध स्थापित करना नियुक्ति का प्रयोजन है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो सूत्र और अर्थ का निश्चित सम्बन्ध बताने वाली व्याख्या नियुक्ति है अथवा निश्चय से अर्थ का प्रतिपादन करने वाली युक्ति नियुक्ति है। सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान् सारपेण्टियर ने नियुक्ति की परिभाषा करते हुए लिखा है कि 'नियुक्तियाँ अपने प्रधान भाग के केवल इंडेक्स का काम करती हैं। वे सभी विस्तार युक्त घटनावलियों का संक्षेप से उल्लेख करती हैं।
निशीथनियुक्ति में भी सूत्रगत शब्दों की व्याख्या निक्षेप पद्धति से की गई है। संभवतः निशीथनियुक्ति एक प्रकार से आचारांगनियुक्ति का ही अंग है, क्योंकि आचारांगनियुक्ति के अंत में स्वयं नियुक्तिकार ने लिखा है कि पंचम चूलिका निशीथ की नियुक्ति मैं बाद में करुंगा। संक्षेपतः निशीथ मूलसूत्र की भाँति निशीथनियुक्ति भी प्रायश्चित्त विधि-विधान का मौलिक ग्रन्थ है। इसमें प्रायश्चित्त योग्य दोषपूर्ण क्रियाओं (शब्दों) का सूत्रशः अर्थ किया गया है। निशीथभाष्य
नियुक्तियों की व्याख्या शैली अत्यन्त गूढ़ और संक्षिप्त होती हैं। उसका मुख्य लक्ष्य पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना होता है। परन्तु नियुक्तियों के गम्भीर रहस्यों को प्रकट करने वाले पद्यात्मक प्राकृत व्याख्याएँ भाष्य कहलाती है। नियुक्तियों के शब्दों में छिपा हुआ अर्थ बाहुल्य भाष्य द्वारा अभिव्यक्त होता है।
' आवध्यकनियुक्ति गा. ८८ २ 'सूत्रार्थयोः परस्परं नियोजन सम्बन्धनं नियुक्ति - वही ८३ ३ निश्चयेन अर्थप्रतिपादिक युक्तिः नियुक्तिः - वही १/२/१ * उद्धृत-निशीथसूत्र, भूमिका देवेन्द्रमुनि पृ. ६५ ५ पंचमचूला निसीहं, तस्स य उवरि भणीहामि - आवश्यकनियुक्ति गा. ३४६
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