Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/345
• परिवासितकृत सूत्र में साधु-साध्वी को रात्रि में रखे हुए आहार को
ग्रहण करने का निषेध किया गया है। तैल आदि के उपयोग का भी निषेध किया गया है। परिहारकल्पविषयक सूत्र में निर्देश दिया है कि परिहारकल्प में स्थित साधु को यदि स्थविर आदि के आदेश से अन्यत्र जाना पड़े तो तुरन्त जाना चहिए एवं कार्य पूर्ण करके पुनः लौट आना चाहिये। ऐसा करते समय चारित्र में किसी प्रकार का दोष लग जाये तो प्रायश्चित्त ग्रहण करना चाहिये। पुलाकभक्त सूत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि साध्वियों को एक स्थान से पुलाकभक्त-सरसआहार प्राप्त हो जाये तो उस दिन उस आहार से संतोष करके दूसरी जगह आहार लाने के लिए नहीं जाना चहिये। यदि
उदरपूर्ति न हुई हो तो दूसरी बार भिक्षा के लिए जाने में कोई दोष नहीं है। षष्टम उद्देशक - इस षष्टम उद्देशक में बीस सूत्र हैं। इस उद्देशक के प्रारम्भ में साधु-साध्वी के छः प्रकार की भाषा न बोलने का विधान प्रस्तुत किया है। तदनन्तर प्राणातिपात आदि पाँच महाव्रतों के सम्बन्ध में किसी पर मिथ्या आरोप लगाने वालों से सम्बन्धित प्रायश्चित्त बताये गये हैं। तत्पश्चात् साधु-साध्वी के परस्पर कण्टक आदि निकालने की विधि बताई गयी है। इसके आगे साधु के डूबने, गिरने, फिसलने आदि का मौका आने पर एवं साध्वी को के डूबने की स्थिति में साधु हाथ आदि पकड़कर एक-दूसरे को डूबने से बचा सकते है, इसका विधान किया गया है। क्षिप्तचित्त निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी के विषय में भी परस्पर पूर्ववत् ही विधि-निषेध समझना चाहिए। अन्त में साध्वाचार को नष्ट करने वाले छः स्थान एवं छः प्रकार की कल्पस्थिति का वर्णन किया है। बृहत्कल्प के इस परिचय से स्पष्ट होता है कि जैन आचार की दृष्टि से इस लघुकाय ग्रन्थ का विशेष महत्त्व रहा हुआ है। इसमें साधु-साध्वियों के दैनिक व्यवहार सम्बन्धी क्रियाकलापों का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत हुआ है। इसी विशेषता के कारण यह कल्पसूत्र (आचार विधि) का शास्त्र कहा जाता है। बृहत्कल्पनियुक्ति
यह नियुक्ति भाष्यमिश्रित अवस्था में मिलती है। यह मूल सूत्र पर रची गई है। यह प्राकृतपद्य में है। इस नियुक्ति का वर्ण्य विषय वही है जो बृहत्कल्प मूलसूत्र का है। बृहत्कल्प का प्रतिपाद्य विषय कह चुके हैं। यहाँ विशेष इतना ध्यान देने योग्य है कि नियुक्ति में कई शब्दों एवं पदों का विवेचन नामादि निक्षेप पूर्वक किया गया है तथा कई शब्दों के भेद-प्रभेदादि बताये गये हैं। प्रसंगोचित कुछ
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