Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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328/प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य
का प्रायश्चित्त आता है। मासलघु प्रायश्चित्त ये योग्य दोष ये हैं - दारुदण्ड का पादपोंछन करना, दारुदण्ड का पादपोंछन रखना, दारुदण्ड का पादपोंछन (शोभा के लिए) धोना, अचित्त भाजन आदि में रखी हुई गन्ध को सूंघना, कीचड़ के रास्ते में पत्थर आदि रखना, पानी निकालने की नाली आदि बनवाना, बाँधने का पर्दा आदि बनवाना, सुई को स्वयमेव सुधारना, कैंची आदि को स्वयमेव सुधारना, थोड़ा सा भी कठोर वचन बोलना, जरा सा भी झूठ बोलना, जरा सी भी चोरी करना, थोडे से भी अचित्त पानी से हाथ, पाँव, कान, आँख, दाँत, नख, मुख धोना, अखण्ड चर्म रखना, अखण्ड (बिना फाड़ा) वस्त्र रखना, अलाबु आदि से पाँव को स्वयमेव सुधारना-घिसना, दण्ड आदि को स्वयमेव सुधारना, किसी पर दबाव डालकर पात्र आदि लेना, हमेशा अग्रपिण्ड (चावल आदि पके हुए पदार्थों का ऊपर का प्रथम भाग, पहली ही पहली रोटी आदि) ग्रहण करना, हमेशा एक ही घर का आहार खाना, नित्य भाग (दान के लिए निकाला जाने वाला कुछ हिस्सा) का उपभोग करना, हमेशा एक ही स्थान पर रहना, दाता की प्रशंसा करना, भिक्षाकाल के पूर्व अथवा पश्चात् निष्कारण अपने परिचित घरों में प्रवेश करना, अन्यतीर्थिक आदि के साथ स्थंडिलभूमि के लिए जाना, अनेक प्रकार के खाद्यपदार्थ ग्रहण कर उनमें से अच्छी-अच्छी चीजें खा जाना एवं खराब चीजें फेंक देना, शय्यातर के घर का आहार पानी ग्रहण करना, माँग कर लाये हुए शय्या संस्तारक को मर्यादा से अधिक समय तक रखना, उपाश्रय का परिवर्तन करते समय बिना स्वामी की अनुमति के किसी प्रकार का सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना, प्रातिहारिक (वापिस देने योग्य) शय्या संस्तारक स्वामी को सौंपे बिना विहार कर लेना, बिना प्रतिलेखन के उपधि उपकरण रखना आदि-आदि। तीसरा उद्देशक - तृतीय उद्देशक में भी उन दोषों का उल्लेख किया गया है जिनकी शुद्धि के लिए मासलघु का प्रायश्चित्त विधान है। वे दोष निम्नोक्त हैं -
धर्मशाला, आरामगृह, गृहपतिकुल, तथा अन्यतीथिकागृह में जाकर अशनादि की याचना करना, इन्कार कर देने पर भी किसी के घर में आहारादि के निमित्त प्रवेश करना, भोजादि में से आहारादि ग्रहण करना, पाँवो को साफ करना, पैरों में तेल आदि लगाना, पैरों को उष्ण या शीत जल से धोना, गुर्दे अथवा कुक्षी में उत्पन्न कृमियों को अंगुली से निकालना, लंबे नाखूनों को काटना, गुह्य स्थान के लंबे बालों को काटना, जंघा-कुक्षि दाढ़ी मूछों के लंबे बालों को काटना, दाँतो को घिसना, दाँतों में रंग लगाना, आँखे मसल कर साफ सुथरी करना, पाँव आदि रगड़-रगड़ कर साफ करना, शरीर का पसीना साफ करना,
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