Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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326/प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य
आतुरता से लगनेवाले अतिचारादि के प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त जघन्यतप | मध्यमतप | उत्कृष्टतप | १. लघुमास चार आयंबिल पन्द्रह आयंबिल सत्तावीस आयंबिल २. गुरुमास चार आयंबिल एवं पन्द्रह आयंबिल | तीस आयंबिल
पारणे में चोर एवं पारणा में पारणे में चोर | विगय का त्याग |चोर विगय का विगय का त्याग
त्याग | ३. लघु चौमासी चार उपवास चार छठ (बेले) एक सौ आठ
उपवास | ४. गुरु चौमासी चार छठ या चार चार अठ्ठम या एक सौ बीस दिन का छेद | चार दिन का छेद | उपवास या चार
मास का छेद तीव्र मोहदय (आसक्ति) से लगने वाले अतिचारादि के प्रायश्चित्त | प्रायश्चित्त नाम जघन्यतप
मध्यमतप | उत्कृष्टतप १. लघुमास चार उपवास पन्द्रह उपवास | सत्तावीस उपवास २. गुरुमास चारउपवास | पन्द्रह उपवास तीस उपवास चौवीहार त्याग
चौवीहार त्याग चौवीहार त्याग | ३. लघु चौमासी चार बेले, पारणे | चार तेले, पारणे | एक सौ आठ में आयंबिल में आयंबिल उपवास, पारणे में
आयंबिल ४. गुरु चौमासी चार तेले, पारणे | पन्द्रह तेले पारणे | एक सौ बीस
में आयंबिल या में आयंबिल या | उपवास, पारणे में ४० दिन का दीक्षा ६० दिन का दीक्षा | आयंबिल या १२० छेद
दिन का दीक्षा छेद यहाँ जानने योग्य है कि प्रतिसेवी की वय, सहिष्णुता और देश-काल के अनुसार गीतार्थ मुनि 'तालिका' में कहे प्रायश्चित्त से हीनाधिक तप-छेद आदि दे सकते हैं। दूसरी बात यह है कि निशीथसूत्र में जहाँ-जहाँ भी उक्त चार प्रकार के प्रायश्चित्त के विधान कहे गये हैं वहाँ-वहाँ पराधीनता, आतुरता एवं आसक्ति आदि की अपेक्षा तथा परिणामों और अध्यवसायों की तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम कोटियाँ के आधार पर समझने जानने चाहिये।
छेद
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