Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 323
पर्याय उपलब्ध है। इसमें से निर्युक्ति और चूर्णि का प्रकाशन हुआ है। इनमें १४१ गाथा परिमाण, चूर्णि २२२५ या २१६१ श्लोक परिमाण, ब्रह्ममुनि कृत टीका ५१५२ श्लोक परिमाण है । '
दशाश्रुतस्कन्ध निर्युक्ति - यह निर्युक्ति दशाश्रुतस्कन्ध नामक छेदसूत्र पर है। यह प्राकृत पद्य में है। इसमें १४१ गाथाएँ है । इस कृति के प्रारम्भ में नियुक्तिकार ने दसा, कल्प और व्यवहार सूत्र के कर्ता भद्रबाहु को नमस्कार किया है। विषय निरूपण का प्रारम्भ दशा के निक्षेप से किया गया है। द्रव्य निक्षेप की दृष्टि से दशा वस्तु की अवस्था है तो भावनिक्षेप की दृष्टि से जीवन की अवस्था हैं।
प्रथम अध्ययन असमाधिस्थान की नियुक्ति में द्रव्य और भावसमाधि का स्वरूप बताया गया है तथा स्थान के सम्बन्ध में पन्द्रह प्रकार के निक्षेपों का उल्लेख किया है। द्वितीय अध्ययन शबल की निर्युक्ति में शबल का नामादि चार निक्षेपों से व्याख्यान किया गया है। तृतीय अध्ययन आशातना की नियुक्ति में दो प्रकार की आशातनाओं की व्याख्या है। चतुर्थ अध्ययन गणि सम्पदा की निर्युक्ति में 'गणि और संपदा' पदों का निक्षेपपूर्वक विचार किया गया है। पंचम अध्ययन की नियुक्ति में 'चित्त और समाधि' का निक्षेप पूर्वक कथन किया गया है। षष्टम अध्ययन की निर्युक्ति में 'उपासक' और 'प्रतिमा' का निक्षेप पूर्वक व्याख्यान किया गया है।
सप्तम अध्ययन में भावभिक्षु की पाँच प्रतिमाओं का उल्लेख किया गया है। अष्टम अध्ययन की निर्युक्ति में पर्युषणाकल्प का व्याख्यान किया गया है। नवम अध्ययन में मोह के नामादि चार प्रकार कहे गये हैं और मोह के पर्यायवाची नाम बताये गये हैं। दशम अध्ययन में जन्म-मरण का क्या कारण है और मोक्ष किस प्रकार होता है इन दोनों प्रश्नों का समाधान किया गया है।
संक्षेपतः इस निर्युक्ति में मूलसूत्र की विशिष्ट विवेचना की गई है। जो प्रायश्चित्त विधान से गहरा सम्बन्ध रखती है।
दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति एक अध्ययन - डॉ. अशोककुमारसिंह, पृ. ५३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org