Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/81
कार्यानुमोदनविरत और १२. उद्दिष्टाहारविरत। इनमें प्रथम नाम के अतिरिक्त शेष नाम ग्यारह प्रतिमाओं के हैं। इससे स्पष्ट होता है कि श्रावक को व्रत धारण करने के पूर्व सम्यग्दर्शन धारण करना अनिवार्य है।
इस ग्रन्थ की अनोखी विशेषता यह है कि ग्रन्थकार ने पौषधोपवास शिक्षाव्रत में उपवास न कर सकने वालों के लिए एकभक्त, निर्विकृति आदि करने का विधान किया है। अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत में चार प्रकारों के दानों का निर्देश किया है, पर आहारदान के सन्दर्भ में विशेष यह कहा है कि एक भोजन दान के देने पर शेष तीन दान स्वतः दे दिये जाते हैं। देशावगासिक शिक्षाव्रत में दिशाओं का संकोच और इन्द्रिय विषयों का संवरण प्रतिदिन करना आवश्यक बताया है। सामायिक प्रतिमा के स्वरूप में समन्तभद्र के समान कायोत्सर्ग, द्वादशआवर्त्त, दो नमन और चार प्रणाम करने का विधान किया है। पौषधप्रतिमा में सोलह प्रहर के उपवास का विधान किया है। आरम्भ का त्याग आवश्यक बताया है। अनुमति विरत के लिए गृहस्थी के किसी भी कार्य में अनुमति देने का निषेध किया है। उद्दिष्टाहार विरत के लिए याचना रहित और नवकोटि विशुद्ध भोज्य के लेने का विधान किया गया है। संक्षेपतः स्वामिकार्तिकेय ने श्रावकधर्म का परिष्कृत विवेचन किया है। सागारधर्मामृत
यह पं. आशाधरजी की एक विद्वत्तापूर्ण कृति है।' इसमें दिगम्बर जैन परम्परा के श्रावकवर्ग की आचारविधि का विवेचन है। यह रचना संस्कृत के ४७७ श्लोकों में गुम्फित है तथा आठ अध्यायों में विभक्त है। इस कृति का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है -
प्रथम अध्याय - यह पहला अध्याय सम्यक्त्व-प्रतिमा एवं श्रावक के पाक्षिक आदि तीन प्रकारों से सम्बन्धित है। इसमें सागार का लक्षण, सम्यक्त्व की महिमा, असंयमी सम्यग्दृष्टि का महत्व, जिनपूजा, दान के भेद आदि का वर्णन भी हुआ है।
द्वितीय अध्याय - इस अध्याय में श्रावक का प्रथम भेद पाक्षिकश्रावक का कई दृष्टियों से वर्णन किया गया है। इसके प्रारम्भ में कहा है-जो जिन
' (क) यह ग्रन्थ ज्ञानदीपिका (पंजिका) और हिन्दी टीका के साथ 'भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन-नई दिल्ली' से सन् १६४४ में प्रकाशित हुआ है। (ख) सागारधर्मामृत का हिन्दी अनुवाद लालाराम ने किया है और दो भाों में 'दिगम्बर जैन पुस्तकालय-सूरत' से प्रकाशित हुआ है।
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