Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
238 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
से सन् १६२६ में प्रकाशित हुई है । ' मन्त्रदीक्षा
यह अत्यन्त लघु पुस्तिका है । मन्त्रदीक्षा एक छोटा सा उपक्रम है। श्वेताम्बर तेरापंथ परम्परा में इस विधान का अभी - अभी प्रचलन हुआ है। मन्त्र दीक्षा का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए गणाधिपति तुलसी ने लिखा है कि- बच्चों को महामन्त्र से परिचित कराना और उसके प्रयोग से होने वाले लाभ का अनुभव करना ही मन्त्र दीक्षा है । नमस्कार महामन्त्र आबालवृद्ध सबके लिए उपयोगी है। बच्चों को विशेष संस्कार देने के लिए मन्त्रदीक्षा को एक संस्कार के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है जिस प्रकार नामकरण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, उपनयन आदि सोलह संस्कार माने गये हैं, उसी प्रकार आध्यात्मिक विकास के लिए निश्चित संस्कारों में यह एक है ।
उन्होंने कहा है मंत्र दीक्षा कोई प्रदर्शन या पाबन्दी नहीं है वरन् सदाचरण की ओर प्रस्थान तथा आन्तरिक विश्वास को जगाने का उपक्रम है। यानि नैतिक संस्कारों की प्रारंभिक शिक्षा - मंत्र दीक्षा है। मंत्र दीक्षा संस्कार विधि की महत्ता एवं उपयोगिता का उल्लेख करते हुए कहा गया हैं कि बालक का मन कोरे कागज के समान होता है, जिस पर जैसा चित्र चाहें उकेरा जा सकता है। वैज्ञानिक तथ्यों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि पाँच से नौ वर्ष की उम्र का समय बच्चों के मानसिक विकास एवं आन्तरिक आस्था के जागरण का होता है। इस उम्र में बच्चों को जो ठोस आहार मिलता है वह जीवन भर उसे शक्ति प्रदान करता है।
नमस्कार महामंत्र के प्रति समर्पण का भाव जगे, इस प्रयोग का नाम ही मंत्र दीक्षा है। दीक्षा के इस कार्यक्रम में बच्चों की मूलभूत आस्थाओं के साथ नमस्कार महामंत्र का उच्चारण करवाया जाता है। इस कृति में वन्दनविधि, सामायिकसूत्र, सामायिक - आलोचनासूत्र के साथ-साथ मंत्रदीक्षा के संकल्पसूत्र, शिक्षासूत्र भी दिये गये हैं। स्पष्टतः मन्त्रदीक्षा संस्कार विधि का एक नया उपक्रम है। इसका प्रयोग सभी के लिए उपयोगी है।
२
-
जिनरत्नकोश (पृ. ३२३) में योगविधि नाम की पाँच रचनाएँ मिलती हैं। . यहाँ योगविधि से तात्पर्य - योगवहन विधि होना चाहिये ।
योगविधि - यह रचना श्री इन्द्राचार्य की है। योगविधि - इसके कर्त्ता भानुप्रभ के
9
जिनरत्नकोश- पृ. २६१
२ अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद्- लाडनूं (आठवां संस्करण)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org