Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
256/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
स्पष्टतः यह संकलन श्रमण वर्ग के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ जान पड़ता है। इस प्रकार की संकलित कृतियाँ और भी प्रकाशित हुई हैं। उन कृतियों का अवलोकन करने से प्रतीत होता है कि प्रायः समान प्रकार की विधियों के पृथक्-पृथक संस्करण अपनी-अपनी परम्परा या समुदाय की अपेक्षा से हो सकते हैं। सप्तोपधानविधि
यह कृति मुनि मंगलसागरजी द्वारा संकलित है।' इस कृति का संकलन वि.सं. १६६६ में हुआ है। यह कृति संकलन की दृष्टि से अर्वाचीन है परन्तु इसमें प्रतिपादित उपधान विधि प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर दी गई है। प्रस्तुत कृ ति की प्रस्तावना में आधारभूत ग्रन्थों के जो नाम दिये गये हैं उनमें महानिशीथ, विधिमार्गप्रपा, आचार- दिनकर, सामाचारीशतक आदि प्रमुख हैं। यह कृति संस्कृत गद्य में है। इस कृति में अपने नाम के अनुसार सात प्रकार की उपधान तप विधि का सम्यक् विवेचन किया गया है।
सद्गुरु के मुख से नमस्कारमन्त्रादि सूत्रों को यथाविधि एवं तप पूर्वक धारण करना या ग्रहण करना उपधान तप है। उपधान सात होते हैं। पूर्वकाल में सभी उपधान एक साथ वहन किये जाते थे, परन्तु देश-कालादि को देखकर गीतार्थ आचार्यों ने इस तपविधि को सुगम और सरल बनाया है। वर्तमान में प्रायः तीन परिपाटी के द्वारा सात प्रकार के उपधान वहन किये-करवाये जाते हैं। प्रथम उपधान ५१ दिनों का होता है, दूसरा उपधान ३५ दिनों का होता है तथा तीसरा उपधान २८ दिनों में पूर्ण होता हैं। सात उपधान के नाम ये हैं -
१. पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध उपधान- नमस्कारमंत्र २. इरियावहियाश्रुतस्कन्ध उपधान- इरियावहिसूत्र ३. भावअरिहंतस्तव उपधान- णमुत्थुणसूत्र ४. स्थापनाअरिहंतस्तव उपधान- अरिहंतचेइयाणंसूत्र ५. नामअरिहन्तस्तव उपधानलोगस्ससूत्र ६. द्रव्य- अरिहंतस्तव उपधान- पुक्खरवरदीसूत्र ७. सिद्धस्तव उपधान सिद्धाणंबुद्धाणंसूत्र
प्रस्तुत कृति में उपधान विधि से सम्बन्धित जो विधि-विधान उल्लेखित हुये हैं उनके नामोल्लेख इस प्रकार हैं
१. उपधान प्रवेश विधि २. उपधान प्रवेश के दिन प्रभात काल की क्रिया विधि ३. उपधान प्रवेश के दिन करने योग्य नन्दिरचना विधि ४. उपधान तप उत्क्षेप विधि ५. अठारह स्तुतियाँ पूर्वक देववन्दन विधि ६. उद्देश
' यह कृति वि.सं. २००८, जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार,गोपीपुरा, सूरत से प्रकाशित है। ' प्रस्तुत कृति में उपधान विधि खरतरगच्छीय परम्परानुसार दी गई है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org