Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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314/प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य
स्पष्टतः यह भाष्य जैन आचारशास्त्र एवं आचारशुद्धि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। वर्तमान परम्परा में प्रायश्चित्त का विधान जीत-व्यवहार के अनुसार ही प्रवर्तित है उस दृष्टि से इस ग्रन्थ की उपादेयता कई गुणा अधिक है। जीतकल्प-बृहच्चूर्णि
प्रस्तुत चूर्णि सिद्धसेनसूरि की है। इस चूर्णि के अध्ययन से ऐसा ज्ञात होता है कि इसके अतिरिक्त जीतकल्पसूत्र पर एक और चूर्णि भी लिखी गई थी। यह चूर्णि अथ से इति तक प्राकृत में है। इसमें एक भी वाक्य ऐसा नहीं है, जिसमें संस्कृत शब्द का प्रयोग हुआ हो।
जीतकल्पचूर्णि में उन्हीं विषयों का संक्षिप्त गद्यात्मक व्याख्यान हुआ है। जिनका जीतकल्पभाष्य में विस्तार से विवेचन किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि यह चूर्णि-भाष्य के आधार पर ही रची गई है। इस चूर्णि में अनेक गाथाएँ उद्धृत की गई है; किन्तु इन गाथाओं को उद्धृत करते समय सिद्धसेन ने किसी ग्रन्थ का निर्देश न करके 'तं जहा भणियं च' 'सो-इमो' इत्यादि वाक्यों का प्रयोग किया है। इसमें अनेक गद्यांश भी उद्धृत किये गये हैं।
प्रारम्भ में ग्यारह गाथाओं द्वारा भगवान महावीर, एकादश गणधर, विशिष्ट ज्ञानी तथा सूत्रकार जिनभद्रक्षमाश्रमण को नमस्कार किया है। फिर आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा एवं जीत व्यवहार का स्वरूप समझाया गया है। तदनु 'जीत' शब्द का अर्थ, दस प्रकार के प्रायश्चित्त, नौ प्रकार के व्यवहार, मूलगुण-उत्तरगुण आदि का विवेचन किया गया है। पुनः अन्त में जिनभद्र को नमस्कार करते हुए गाथाओं के साथ चूर्णि की समाप्ति की है।' जइ-जीय-कप्पो (यतिजीतकल्प)
इस कृति के रचयिता धर्मघोषसूरि के शिष्य और २८ यमक स्तुति के प्रणेता सोमप्रभसूरि है। इस कृति का संशोधन श्री माणिक्यसागरसूरि के शिष्य मुनि लाभसागरगणी ने किया है। यह कृति जैन महाराष्ट्री प्राकृत के ३०६ पद्यों में निबद्ध है। प्रस्तुत कृति मूलतः प्रायश्चित्त विधान से सम्बन्धित है। कृति के नामानुसार इसमें श्रमण के आचार विषयक प्रायश्चित्त कहे गये हैं। साथ ही कुछ विधियों का भी उल्लेख किया गया है।
' आधार- जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भा. ३ पृ. २६१ २ यह ग्रन्थ साधुरत्नसूरि की वृत्ति सहित आगमोद्धारक ग्रन्थमाला शा. रमणलाल जयचन्द कपडगंज (जि.) खेड़ा से प्रकाशित है।
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