Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 309
छेदपिण्ड
यह रचना प्राकृत पद्य में है। इसकी संस्कृत छाया पं. पन्नालाल ने लिखी है । ग्रन्थ की अन्तिम गाथा ( नं. ३६० ) के अनुसार इसका गाथा परिमाण ३३३ और ग्रन्थाग्र ४२० है । वर्तमान ग्रन्थ की गाथा संख्या ३६२ है । यहाँ छेद शब्द प्रायश्चित्त का पर्यायवाची है ।
यह ग्रन्थ इन्द्रनन्दि-संहिता का चौथा अध्याय अथवा उसका एक भाग है, परन्तु अनेक भंडारों में यह स्वतंत्र रूप से भी मिलता है। इसके कर्त्ता इन्द्रनन्दि योगीन्द्र है, जो संभवतः नन्दिसंघ के आचार्य थे। इस ग्रन्थ का रचनाकाल विक्रम की १४ वीं शती निश्चित होता है। इस विषय में उल्लेख मिलता है, कि यह छेदपिण्ड जिस इन्द्रनन्दि संहिता का एक भाग है, उसमें एक अध्याय पूजा विषयक है और उसका नाम पूजाक्रम है। इससे यह सिद्ध होता है कि अय्यपार्य ने जिनका उल्लेख किया है वे यही इन्द्रनन्दि होने चाहिए ।
दिगम्बर परम्परा में इन्द्रनन्दि नाम के कई आचार्य हुए हैं उनमें एक गोम्मटसार के कर्त्ता है गोम्मटसार का काल लगभग दसवीं-ग्यारवीं शती है, अतएव संभव हैं कि ये इन्द्रनन्दि भी लगभग इसी समय के आचार्य हो, किन्तु इतना निश्चित है कि इसके कर्त्ता इन्द्रनन्दि है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण एवं प्रयोजन को लेकर दो श्लोक दिये गये हैं उनमें अरिहन्त परमात्मा को नमस्कार करके निश्चयनय का आश्रय लेकर मुनि एवं गृहस्थ के मूलोत्तरगुणादि में प्रमाद - दर्पादि के द्वारा लगने वाले अतिचारों में प्रायश्चित्त कहने की प्रतिज्ञा की गई है । अन्त में सात पद्य प्रशस्ति रूप में हैं।
इस कृति में सामान्यतया साधु और श्रावक के प्रायश्चित्तों का निरूपण हुआ है। साध्वाचार सम्बन्धी पाँचमहाव्रत, छठा रात्रिभोजनविरमणव्रत, पाँचसमिति, लोच, आवश्यक, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, चातुर्मासिकतप, छःमासिकतप, छेद, मूल, पारांचिक आदि तथा श्रावकाचार सम्बन्धी अष्टमूलगुण, पाँच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत इत्यादि प्रमुख विषयों के प्रायचित्त कहे गये हैं ।
जीतकल्प
जीतकल्प को छेदसूत्र माना गया है। छेदसूत्रों में इसका पाँचवां स्थान है। इस सूत्र के प्रणेता प्रसिद्ध भाष्यकार जिनभद्रगणि- क्षमाश्रमण है। इस ग्रन्थ का
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यह ग्रन्थ 'प्रायश्चित्तसंग्रह' नामक ग्रन्थ में संकलित है।
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