Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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270 / समाधिमरण सम्बन्धी साहित्य
द्वारों' का प्रतिपादन किया गया है उन द्वारों की संक्षिप्त विषय वस्तु इस प्रकार है१. आलोचनाद्वार - इस द्वार में यह प्रतिपादित हैं कि विविध तपों के द्वारा शरीर के क्षीण होने पर एवं मृत्यु आसन्न होने पर आराधक को मृत्यु भय की चिन्ता न करके शल्यमरण के गुण-दोषों का विचार करना चाहिए। शल्यमरण से यह जीव संसार रूपी अटवी में भ्रमण करता रहता है। माया - निदान - मिथ्यात्व - शल्य को दूर कर सम्यक् आराधना करने वाला तीसरे भव में निर्वाण प्राप्त करता है, इत्यादि का चिन्तन करके आराधक को गुरु के समक्ष बिना कुछ छिपाये सरल चित्त से आलोचना करनी चाहिए। जो कुछ भी अकार्य किया हो उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए तथा पाँच प्रकार के ज्ञान, आठ प्रकार के दर्शनाचार, जिन, सिद्ध, आचार्य, वाचक, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका चैत्य आदि के सम्बन्ध में हुई आशातना की आलोचना करनी चाहिए। समिति गुप्ति रूप अथवा मूलगुण एवं उत्तरगुण रूप चारित्र की, जो विराधना हुई हो, उसकी भी आलोचना करनी चाहिए। यदि वीर्य ( पुरुषार्थ ) में विधिपूर्वक प्रवृत्त न हुआ हों तो उसकी भी सम्यक् आलोचना करनी चाहिए।
२. व्रतोच्चार द्वार इस द्वार में यह निरूपित हैं कि आराधक को सुगुरु के समीप में आलोचना पूर्वक शल्यादि भाव दूर करने चाहिए और महाव्रतों के पालन की भावपूर्वक प्रतिज्ञा करनी चाहिए, उसे प्राणातिपात, असत्य, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह का सर्वथा परित्याग करना चाहिए । फिर सभी कषायों और मिथ्यादर्शनशल्य का त्याग कर श्रद्धापूर्वक संस्तारक पर आरूढ़ होने के लिए गमन करना चाहिए।
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३. क्षमापनाद्वार इस तृतीय द्वार में बताया गया है कि आराधक को चतुर्विध संघ एवं संसार में जिसके प्रति भी मोहवश अपराध किया है, उनसे क्षमापना करनी चाहिए। इस द्वार में आराधक के द्वारा सभी प्रकार के जीवों से क्षमायाचना करने का निर्देश है।
४. अनशनद्वार इस द्वार में सर्व प्रकार के आहार का त्यागकर, आराधक द्वारा अनशन ग्रहण करने का निरूपण किया गया है।
५. शुभभावनाद्वार इस पंचम द्वार में यह वर्णित है कि आराधक को एकत्व आदि बारह भावनाओं का चिन्तन करना चाहिए। इन भावनाओं का चिन्तन करने से अनशनव्रत का निर्विघ्न पालन होता है।
' वही, पृ. २२४ गा. १
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