Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/269
अध्याय ७ समाधिमरण सम्बन्धी विधि-विधानपरक साहित्य
वर्तमान की श्वेताम्बर परम्परा में मान्य पैंतालीस आगमसूत्रों में प्रकीर्णकसूत्र भी समाविष्ट किये गये हैं। प्रकीर्णक शब्द 'प्र' उपसर्ग पूर्वक, 'कृ' धातु से 'क्त' प्रत्यय और 'कन्' प्रत्यय होने पर बना है। इसका शाब्दिक अर्थ हैनानासंग्रह, फुटकर वस्तुओं का संग्रह और विविध वस्तुओं का अध्याय। वस्तुतः विविध विषयों पर संकलित ग्रन्थ प्रकीर्णक कहलाते हैं। परम्परागत मान्यता प्रत्येक श्रमण द्वारा एक प्रकीर्णक रचने का उल्लेख करती हैं। समवायांगसूत्र में ऋषभदेव के चौराशी हजार शिष्यों के उतने ही प्रकीर्णकों का उल्लेख हैं।' भगवान महावीर के तीर्थ में भी चौदह हजार श्रमणों द्वारा उतने ही प्रकीर्णक रचने की मान्यता है। संप्रति जैन साहित्य में कुल बत्तीस प्रकीर्णकों की चर्चा उपलब्ध होती हैं। उनमें ग्यारह प्रकीर्णक पृथक्-पृथक् विषयों को आधार बनाकर रचे गये हैं तथा इक्कीस प्रकीर्णक किसी न किसी रूप में समाधिमरण विधि का प्रतिपादन करते
उल्लेखनीय है कि नन्दनमुनि आराधित आराधना प्रकीर्णक के अतिरिक्त समस्त प्रकीर्णक प्राकृत भाषा में रचे गये हैं। इनमें ८ से लेकर १२६१ तक की गाथाओं वाले प्रकीर्णक हैं। कुछ प्रकीर्णक समान शीर्षक वाले भी हैं। आतुरप्रत्याख्यान नाम के तीन प्रकीर्णक हैं तथा चतुःशरण आराधनापताका और मिथ्यादुष्कृतकुलक नाम वाले दो-दो प्रकीर्णक हैं। ये सभी प्रकीर्णक समाधिमरण का, स्वरूप, माहात्म्य, विधि एवं समाधिमरण से होने वाले लाभ इत्यादिक विषयों का प्रतिपादन करने वाले हैं। इनका प्रतिपाद्य विषय यही है। अतः ये ग्रन्थ जीवन की अन्तिम आराधना के महत्त्वपूर्ण अंगों एवं उसके विधि-विधानपरक कृत्यों को प्रस्तुत करने वाले है। इन प्रकीर्णक ग्रन्थों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार हैं - अभयदेवसूरि प्रणीत आराधनाप्रकरण
__ यह कृति अभयदेवसूरि की है। इस प्रकीर्णक' में ८५ गाथाएँ निबद्ध की गई हैं। इस प्रकीर्णक में मरणविधि अर्थात् अनशनव्रतग्रहणविधि से सम्बन्धित छ:
समवायांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, समवाय ८४ आगम प्रकाशन समिति, १६८२, २ वही, समवाय १४ * पइण्णयसुत्ताई, भा. १, पृ. २२४-२३१
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