Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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264 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
उल्लेख है। चौदहवें द्वार में उपाध्यायपद पर स्थापित करने की विधि बतलायी गयी है । पन्द्रहवें द्वार में महत्तरापद पर स्थापित करने की विधि दिखलायी गयी है। सोलहवें द्वार में गणानुज्ञा (गच्छ या समुदाय संबंधी विशिष्ट दायित्व अनुमति देने अथवा गच्छाधिपति पद पर आसीन करने) की विधि का आख्यान है।
सतरहवें द्वार में योग विधि का वर्णन है । अठारहवें द्वार में अचित्तसंयत ( मृतदेह ) प्रतिस्थापन विधि कही गई है। उन्नीसवें द्वार में पौषधव्रत विधि एवं सम्यक्त्वादि की महिमा का प्रतिपादन किया गया है। बीसवें द्वार में जिनबिंब की प्रतिष्ठा विधि' कही गई है। इसके साथ ही इसमें ध्वजा को स्थापित करने की विधि और कलश को स्थापित करने की विधि भी निरूपित है। प्रस्तुत कृति का उल्लेख जइजीयकल्प (यतिजीतकल्प) की वृत्ति में साधुरत्नसूरि ने किया है।
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विविध प्रतिष्ठा कल्प के आधार पर इसकी योजना की गई है ऐसा अन्त में कहा गया है।
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