Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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240/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
भी अर्थ अभिप्रेत है, क्योंकि खरतरगच्छ के दो नाम प्रसिद्ध हैं (9) विधिपक्ष (विधिमार्ग) और (२) सुविहित पक्ष (सुविहित मार्ग)। इस ग्रन्थ की सामाचारी में जो विधि-विधान प्रतिपादित किये गये हैं, वे प्रधानतया खरतरगच्छ के पूर्व आचार्यों द्वारा स्वीकृत और सम्मत रहे हैं। इन विधि-विधानों की प्रक्रिया में अन्य गच्छ के आचार्यों का कहीं कुछ मतभेद हो सकता है और है भी सही। अतएव ग्रन्थकार ने स्पष्ट रूप से इसके नाम से किसी को कुछ भ्रान्ति न हो, इसलिए इसका "विधिमार्गप्रपा' ऐसा अन्वर्थक नामकरण किया है।
तदुपरान्त इस ग्रन्थ प्रशस्ति की प्रथम गाथा में यह भी सचित किया है कि- "भिन्न-भिन्न गच्छों में प्रवर्तित अनेकविध सामाचारियों को देखकर शिष्यों को किसी प्रकार का मतिभ्रम न हों, इसलिए अपने गच्छ प्रतिबद्ध ऐसी यह सामाचारी जिनप्रभसूरि के द्वारा लिखी गई है।" अतएव इसका विधिमार्गप्रपा नाम सर्वथा सुसंगत है। 'विधिमार्गप्रपा' ग्रन्थ का वैशिष्टय- विधि-विधानों की अपेक्षा से इस ग्रन्थ की महत्ता तथा मान्यता न केवल खरतरगच्छ परम्परा तक ही सीमित है वरन् परवर्ती अचलगच्छ, तपागच्छ, पार्श्वचन्द्रगच्छ आदि अनेक परम्पराएँ भी इसको प्रामाणिक रूप से स्वीकृत करती हैं अनेक विध परम्पराओं ने अंश रूप से या पूर्ण रूप से हो किसी न किसी रूप में, इस ग्रन्थ का अनुकरण किया है और इसे प्रमाणिक ग्रन्थ की कोटि मे स्थान दिया है। कल्याणविजयगणिकृत कल्याणकलिका, सकलचन्द्रगणिकृत प्रतिष्ठाकल्प समय- सुन्दरकृत सामाचारीशतक, रायचन्द्रमुनिकृत शुद्धसामाचारीप्रकरण इत्यादि कई ग्रन्थों में विधिमार्गप्रपा का प्रमाणिकता के साथ निर्देश किया गया है। इतना ही नहीं, विधि-विधानों का निरूपण करते समय जिनप्रभसूरि को जहाँ कहीं भी सामाचारी भेद या परम्परा भेद का मालूम हुआ है वहाँ-वहाँ अन्य परम्पराओं के अनुसार उनकी मान्यता का सूचन कर दिया है। यही वजह है कि यह ग्रन्थ सामाचारी की दृष्टि से सर्वोपयोगी बना है। इसके अतिरिक्त ग्रन्थ की दूसरी विशिष्टता यह हैं कि ग्रन्थकार ने ग्रन्थान्तर्गत जिन-जिन विधि-विधानों को प्रतिपादित किया है वे पूर्वाचार्यों के सम्प्रदायानुसार ही लिखे गये हैं न कि केवल स्वमति या अपनी कल्पनानुसार। जर्मन् विद्वान प्रो. वेवरने 'सेक्रेड बुक्स ओफ दी जैन्स्' नाम का सुप्रसिद्ध मौलिक निबन्ध लिखा है उसमें मुख्य आधार इसी ग्रन्थ का लिया है। सचमुच यह ग्रन्थ जैन विधिविधानों का परिचय प्राप्त करने वाले इच्छुकों के लिए सुन्दर प्रपातुल्य एवं सर्वश्रेष्ठ है।
विषय की दृष्टि से यह ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करता है। समग्र विधि-विधानों का ऐसा विशद और क्रमबद्ध रूप अन्यत्र कहीं भी देखने में नहीं
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