Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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134/षडावश्यक सम्बन्धी साहित्य
षडावश्यक क्रम का हेतु - आवश्यक विधान में जो साधना का क्रम रखा गया है, वह कार्य कारण भाव की श्रृंखला पर अवस्थित है तथा पूर्ण वैज्ञानिक है। यहाँ आवश्यकविधि क्रम की चर्चा करना अपेक्षित समझती हूँ, क्योंकि आवश्यक एक अपरिहार्य कृत्य है। साधक के लिए सर्वप्रथम समता को प्राप्त करना आवश्यक है। बिना समत्व भाव को अपनाये सद्गुणों के सरस सुमन खिल नहीं सकते। इसलिए प्रथम 'सामायिक' नामक आवश्यक रखा गया है।
जब अन्तर्हदय में विषमभाव की ज्वालाएँ धधक रही हों तब वीतरागी महापुरूषों के गुणों का उत्कीर्तन किस प्रकार किया जा सकता है? समत्त्व को जीवन में धारण करने वाला ही महापुरुषों के गुणों का संकीर्तन कर सकता है इसीलिए सामायिक आवश्यक के पश्चात् 'चतुर्विंशतिस्तव' नामक दूसरा आवश्यक रखा गया है। जब गुणों के प्रति आदरभाव आता है, तभी व्यक्ति का सिर महापुरूषों के चरणों में झुकता है इसीलिए तृतीय आवश्यक वन्दन है। वन्दन करने वाले साधक का हृदय सरल होता है सरल व्यक्ति ही कृत दोषों की आलोचना कर सकता है अतः वन्दन के पश्चात् 'प्रतिक्रमण' आवश्यक का निरूपण है। भूलों का स्मरण कर उन भूलों से मुक्ति पाने के लिए तन एवं मन में स्थैर्य आवश्यक है। कायोत्सर्ग में तन एवं मन की एकाग्रता की जाती है इसीलिए पाँचवां आवश्यक कायोत्सर्ग है। पुनः पाप प्रवृतियों का मूल देहभाव या देहासक्ति है अतः देहासक्ति का त्याग कायोत्सर्ग है। जब तन और मन स्थिर होता है, तभी प्रत्याख्यान किया जा सकता है अतः प्रत्याख्यान आवश्यक का स्थान छठा रखा गया है। इस प्रकार यह षडावश्यक विधान आत्मनिरीक्षण, आत्मपरीक्षण और आत्मोत्कर्ष का श्रेष्ठतम उपाय है। षडावश्यक का स्वरूप - इस सूत्र में मुख्यतः षडावश्यक विधि से सम्बन्धित सूत्र पाठों की चर्चा की गई हैं। साथ ही इसमें साधु एवं श्रावक दोनों के द्वारा आचरण करने योग्य आवश्यकविधि का प्रतिपादन किया गया है। वह विवेचन निम्नोक्त है - प्रथम सामायिक आवश्यक - षडावश्यक में सामायिक का प्रथम स्थान है। वह जैन आचार का सार है। सामायिक अर्थात समभाव की साधना श्रमण और श्रावक दोनों के लिए आवश्यक है। जो भी आत्माएँ साधना मार्ग को स्वीकार करती हैं वे सर्वप्रथम सामायिक चारित्र को ग्रहण करती हैं। श्रमणों के लिए सामायिक प्रथम चारित्र है; तो गृहस्थ साधकों के लिए सामायिक चार शिक्षाव्रतों में प्रथम शिक्षाव्रत है। सामायिक की साधना सभी साधनाओं में सर्वोत्कृष्ट है। सामायिक को चौदह पूर्वो और द्वादशांगी रूप जिनवाणी का सारश्रुत तत्त्व कहा गया है।
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