Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/157
स्पष्टतः यह पुस्तक स्थानक परम्परा के साधु-साध्वी वर्ग की प्रतिक्रमण विधि का सम्यक् परिचय प्रस्तुत करती है। इसमें छह आवश्यक रूप प्रतिक्रमण विधि में कौनसे सूत्र, कब बोले जाते हैं? इसका स्पष्ट निर्देश दिया गया है। श्रमणप्रतिक्रमणसूत्र
यह पुस्तक' तेरापंथ परम्परा के साधु-साध्वी की दृष्टि से निर्मित की गई है। इसमें उनकी प्रतिक्रमण विधि वर्णित है। जैन आगमों में एक आगम है 'आवश्यक'। इसका बहु प्रचलित दूसरा नाम है- प्रतिक्रमणसूत्र। ये प्रतिक्रमण के सूत्र सब परम्पराओं में एक रूप से नहीं है। प्राकृत-संस्कृत आदि भाषा भेद के साथ भावना और विधि में भी अन्तर है। लेकिन छह आवश्यक रूप विधि का प्रयोग सभी परम्पराओं में समान ही है। उसमें कहीं कोई अन्तर नहीं है। लोगस्स; इरियावहि; इतना ही नहीं, णमुत्थुणं; करेमिभंते; इत्यादि मूलसूत्र सभी परम्पराओं में यथावत् है। इस पुस्तक में उनकी परम्परानुसार तथा यथाक्रमपूर्वक प्रतिक्रमण विधि का सम्यक् निर्देश उपलब्ध होता है। प्रतिक्रमण में कहे जाने वाले सूत्र प्रायः स्थानकवासी परम्परा के समतुल्य ही है। यह कृति संशोधित मूलपाठ, संस्कृत छाया, हिन्दी अनुवाद और भावार्थ सहित प्रकाशित है। स्वाध्यायसमुच्चय
यह पुस्तक सौधर्मबृहत्तपागच्छ (त्रिस्तुतिकगच्छ) की परम्परा से सम्बन्धित है। इस कृति में त्रिस्तुतिकगच्छ की परम्परानुसार श्रावक प्रतिक्रमणादि की विधियाँ निर्दिष्ट हुई हैं। इसकी प्रस्तावना आराधकों के लिए अत्यन्त उपयोगी लगती है। इसका परिशिष्ट भी विविध विषयों से युक्त हैं। सामान्यतः प्रस्तुत पुस्तक में विधि सहित एवं कुछ अर्थ सहित निम्न विधियाँ उल्लिखित हैं - १. सामायिक ग्रहण विधि, २. रात्रिक प्रतिक्रमण विधि, ३. सामायिक पूर्ण करने की विधि, ४. दैवसिक प्रतिक्रमण विधि, ५. पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि, ६. चातुर्मासिक प्रतिक्रमण विधि, ७. सांवत्सरिक प्रतिक्रमण विधि, ८. छींक दोष निवारण विधि, ६. दैवसिक पौषध विधि, १०. रात्रिक पौषध विधि, ११. संथारा पौरुषी विधि, १२. प्रत्याख्यान पारण विधि १३. उत्कृष्ट देववन्दन विधि, १४. सामान्य देववन्दन विधि, १५. गुरूवंदन विधि, १६. देशावगासिक ग्रहण विधि, १७. देशावगासिक पारण विधि इत्यादि।
' यह सन् १९८३ जैन विश्व भारती, लाडनूं से प्रकाशित है।
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