Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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तथा शेष में ५०-५० पद्य हैं। वस्तुतः पंचाशक प्रकरण उन्नीस लघुग्रन्थों का एक संकलन है।
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 227
यह विधि-विधान संबंधी विषयों का मौलिक ग्रन्थ है इस ग्रन्थ में गृहस्थ के द्वारा, साधु के द्वारा एवं गृहस्थ-साधु दोनों के द्वारा समझने योग्य एवं पालन करने योग्य विधि-विधान उल्लेखित हैं। इसके साथ ही उन उन विषयों से सम्बन्धित अपेक्षित विधियों का संक्षिप्त विवेचन भी किया गया है। वस्तुतः जैन आचार और कर्मकाण्ड के सन्दर्भ में यह आठवीं शताब्दी की एक महत्त्वपूर्ण कृति है ।
प्रस्तुत कृति के उन्नीस पंचाशकों की विषयवस्तु संक्षेप में इस प्रकार हैं१. श्रावक धर्मविधि - पंचाशक इस कृति के प्रथम पंचाशक में श्रावकधर्म स्वीकार करने की विधि का विवेचन है। इसके साथ ही श्रावक का सामान्य आचार, श्रावक के प्रकार श्रावक के बारह व्रत, उन व्रतों के अतिचारों का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। कहा गया है कि- सम्यक्त्वादि व्रतों के ग्रहण, पालन एवं रक्षण के उपाय तथा उनके विषय एवं प्रयत्न आदि पाँच बातों पर श्रावक को विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त भी अन्य कुछ सामान्य आचार के नियमों पर भी प्रकाश डाला गया है।
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२. दीक्षाविधि पंचाशक इस पंचाशक के अन्तर्गत मुमुक्षुओं के दीक्षा विधान पर प्रकाश डाला गया है। इसके साथ ही दीक्षा योग्य भूमि का शुद्धिकरण, समवसरण की रचना का विधान, दीक्षार्थी की परीक्षा इत्यादि का वर्णन किया गया है।
३. चैत्यवन्दनविधि पंचाशक इस तृतीय पंचाशक में चैत्यवन्दन विधि का प्रतिपादन किया गया है। उसमें वन्दना के प्रकार, चैत्यवन्दन करने के अधिकारी, चैत्यवन्दन का महत्त्व, चैत्यवन्दन के समय बोले जाने योग्य विषयों का स्पर्श किया गया है।
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पूजाविधि पंचाशक इस चतुर्थ पंचाशक में पूजा विधि का वर्णन है, जिसके अन्तर्गत १. पूजा का काल, २. शारीरिक शुचिता, ३. पूजा सामग्री, ४. पूजा विधि, ५. स्तुति - स्तोत्र इन पंचद्वारों का तथा प्रणिधान (संकल्प) और पूजा निर्दोषता का क्रमशः विवेचन किया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि सामान्यतया प्रातः, मध्याह और सायंकाल में पूजा की जाती है, लेकिन आचार्य हरिभद्र ने यहाँ बताया है कि नौकरी, व्यापार आदि आजीविका के कार्यों से जब भी समय मिले तब पूजा करनी चाहिए। यह अपवाद मार्ग है।
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५. प्रत्याख्यान विधि पंचाशक किया गया है। इस पंचाशक में
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प्रस्तुत पंचाशक में प्रत्याख्यान विधि का प्रतिपादन मूलगुण और उत्तरगुण के आधार पर प्रत्याख्यान
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