Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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208/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
७.४ रात्रिक मुँहपत्ति प्रतिलेखन विधि ८. प्रतिदिन सायंकाल में पुरुषों को करवाने की क्रिया ८.१ सन्ध्याकालीन प्रतिलेखन विधि ६.२ चौबीस मांडला विधि ६. श्राविकाओं को प्रतिदिन प्रातःकाल में करवाने योग्य विधियाँ १०. श्राविकाओं को प्रतिदिन सन्ध्याकाल में करवाने योग्य विधियाँ ११. वाचना विधि- इसमें नमस्कार मंत्र आदि सूत्रों की जितनी-जितनी वाचनाएँ होती हैं सभी की पृथक्-पृथक् विधि कही गई हैं। १२. कायोत्सर्ग विधि १२.१ खमासमण विधि १३. नवकारवाली गिनने की विधि १४. उपधान में प्रतिदिन करने योग्य क्रियाएँ १५. उपधान में किन कारणों से दिन गिरते हैं ? १६. उपधान में आलोचना के कारण १७. मालारोपण विधि १७.१ समुद्देश विधि १७.२ अनुज्ञा विधि १८. माला भूमि पर गिर जाये तो पुनः अभिमन्त्रित करने की विधि १६. आलोचना ग्रहण विधि २०. पाली पलटवा विधि। इस कृति के अंत में 'उपधानमंत्र' भी दिया गया है। उपधान विधान
इस पुस्तक का लेखन विजयदक्षसूरि ने किया है। यह कृति' गुजराती में है। इसमें उपधान संबंधी आवश्यक विधि-विधान संकलित किये गये हैं। इसके साथ उपधान का स्वरूप, उपधान की महिमा, उपधान की विशिष्टता, उपधान तप से होने वाले महान् लाभ, उपधान की आराधना करने वालों के लिए उपयोगी सूचनाएँ, उपधान तप में दिन गिरने के कारण, आलोचना के कारण, प्रतिदिन की आवश्यक क्रियाएँ, स्थापनाचार्यजी खुल्ले रखकर करने योग्य क्रियाएँ इत्यादि विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है। उपधान स्वरूप
___ यह पुस्तक गुजराती गद्य में है। इसका लेखन धीरजलाल टोकरशी शाह ने किया है। यह कृति उपधान करने वालों के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है। इस कृति के प्रारम्भ में यह बताया गया हैं कि उपधान क्रिया गुरु की निश्रा में ही क्यों करनी चाहिए? उसके बाद उपधान करने के पूर्व श्रावक को दृढ़ श्रद्धावाला और गृह एवं व्यापार की चिन्ता से मुक्त होने का निर्देश किया है। इसके पश्चात श्रावक और श्राविका के लिए उपधान तप में अवश्य रखने योग्य वस्त्र एवं उपकरणों की चर्चा की है। तदनन्तर क्रमशः तपागच्छीय परम्परानुसार छः प्रकार के उपधान और उनके दिन एवं तप का परिमाण बताया गया है। तदनन्तर छः प्रकार के उपधान की वाचना विधि
' यह कृति वि.सं. २०२८ में, श्री ऊंझा जैन संघ (उ.गु.) द्वारा प्रकाशित हुई है। २ यह कृति श्री विजयदानसूरीश्वर जी जैन ग्रन्थमाला-गोपीपुरा, सूरत से वि.सं. २०१२ में प्रकाशित हुई है।
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