Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/207
विशेष बिन्दू दिये गये हैं जो जानने योग्य हैं और पौषध विधि को सफल बनाने वाले हैं। इसमें 'पौषध विधि' से सम्बन्धित सभी सूत्र दिये गये हैं। यह इस कृति की विशिष्टता है।
पौषध विधि की विषय वस्तु नामनिर्देश रूप में इस प्रकार है :- १. पौषध ग्राही के लिए जानने योग्य सूचनाएँ २. पौषध कब लेना चाहिए? ३. पौषध के लिए आवश्यक उपकरण ४. मूत्र-विसर्जन गमन विधि ५. स्थंडिल गमन विधि ६. पौषध लेने के बाद रात्रिक प्रतिक्रमण करना हो तो उसकी विधि ७. पौषध ग्रहण की विधि ८. पौषध ग्रहण पाठ ६. पौषध ग्रहण करने के बाद प्रभातकालीन प्रतिलेखन की विधि १०. देववंदन की विधि ११. रात्रिक मुहपत्ति प्रतिलेखन की विधि १२. प्रत्याख्यान पारने की विधि १३. पौषधधारी ने आयंबिल नीवि या एकाशन किया हो उसकी विधि १४. भोजन के बाद चैत्यवंदन करने की विधि १५. रात्रिक पौषध ग्रहण विधि १६. सन्ध्या को प्रतिक्रमण करने के पूर्व करने योग्य क्रियाएँ १७. रात्रिक पौषधधारी के लिए रात्रिक प्रतिक्रमण की विधि १८. पौषध में टालने योग्य १६. पौषध के पाँच अतिचार इत्यादि। इस कृति के अन्त में पिस्तालीशआगम तप और चौदह पूर्व तप की विधि भी दी गई है। स्पष्टतः इस कृति का संकलन अनेक दृष्टियों से उपयोगी है। उपधान विधि
यह एक संकलित कृति' है। इसका संयोजन तपागच्छीय रामचन्द्रसूरि के शिष्य कान्तिविजय गणि ने किया है। यह कृति गुजराती भाषा में है। इस कृति की प्रस्तावना पढ़ने जैसी है। इसमें उपधान शब्द की व्युत्पत्ति 'उपदधाति पुष्णाति श्रुतमित्युपधानम' की है और लिखा है कि यहाँ जीतव्यवहार के अनुसार उपधानविधि कही गई है। तत्संबंधी विशेष अधिकार महानिशीथसूत्र में दृष्टिगोचर होता है साथ ही महानिशीथसूत्र का योग किया हुआ साधु ही उपधान तप करवाने का अधिकारी होता है ऐसा निर्दिष्ट किया है।
अब, प्रस्तुत कृति में उपधान विधि से सम्बन्धित जो कुछ कहा गया है उनका नामोल्लेख इस प्रकार है- १. प्रथम उपधान में प्रवेश करने की विधि २. देववन्दन विधि ३. सप्त खमासमण विधि ४. प्रवेदणा (नंदि) विधि ५. द्वितीय उपधान में प्रवेश करने की विधि ६. तृतीय, चतुर्थ, पंचम और षष्टम उपधान में प्रवेश करने की संक्षिप्त विधि। ७. प्रातः काल में पुरुषों को करवाने योग्य क्रिया विधि ७.१ प्रतिलेखन विधि ७.२ देववन्दन विधि ७.३ प्रवेदना (पवेयणा) विधि
' यह कृति श्री सिहोर जैन संघ- ज्ञान खाता से वि.सं. २५०२ में प्रकाशित हुई है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org