Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 211
इसके साथ मंत्रोच्चारण पूर्वक सम्पन्न किये जाने वाले विधि-विधान भी दिये गये हैं यथा- १. पाणिग्रहण संस्कार विधि २. कन्यादान विधि ३. सात प्रदक्षिणा (फेरा) विधि | अन्त में वधू के प्रति वर के सात वचन और वर के प्रति कन्या के सात वचन बताये गये हैं।
जैनविवाह पद्धति
इस नाम की दो कृतियाँ है एक कृति जिनसेन द्वारा रची गई है। दूसरी अज्ञातकर्तृक है। तीसरी कृति 'जैनविवाहविधि' के नाम से है। इन तीनों कृतियों में जैन परम्परा के अनुसार विवाह करने की रीति बतलायी गई है। '
जैन विवाह पद्धति
यह संकलित पुस्तिका है। पं. हंसराज शास्त्री ने श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार इसमें जैन विवाह पद्धति का संग्रह किया है। इस कृति में विवाह से पूर्व की विधि, तोरण प्रतिष्ठा विधि, वर द्वारा संकल्प विधि, अग्नि स्थापना विधि, ग्रन्थि बंधन विधि, कंकण बंधन विधि, वर और वधू के परस्पर में एक-दूसरे के लिए सात-सात प्रतिज्ञा वचन कर मोचन, ग्रन्थि - मोचन, विसर्जन विधि इत्यादि का वर्णन हुआ है।
दीक्षा - बडी दीक्षादि विधि-संग्रह
यह पुस्तक अचलगच्छीय मान्यतानुसार रची गई है। इस कृति की लिपि गुजराती है। यह मुख्यतः प्राकृत भाषा में है। यह रचना अपने नाम के अनुसार दीक्षा - बड़ी दीक्षा आदि स्वीकार करने से सम्बन्धित विधियों का विवेचन करती हैं। इस कृति में उल्लिखित विधियों निम्न हैं -
१. दीक्षा ग्रहण करने की विधि २. योग में प्रवेश करने की विधि ३. प्रवेदन करने की विधि ४. सन्ध्या के समय करने योग्य विधि ५. योग संबंधी यन्त्र ६. कायोत्सर्ग विधि ७. योग में से बाहर निकलने की विधि ८. अनुयोग विधि ६. बडी दीक्षा ग्रहण करने की विधि १०. मांडले के सात आयंबिल की विधि |
यह संग्रह पूर्णचन्द्रसूरीजी द्वारा संकलित किया गया है तथा वासरड़ा श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ ता. वाव, बनासकांठा, से प्रकाशित है।
जिनरत्नकोश पृ. १४५
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यह कृति सन् १६३८ में श्री जैन सुमति मित्र मण्डल जैन बाजार, रावलपिंडी सिटी से प्रकाशित है।
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