Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 189
७. शुचि - संस्कार विधि - यह संस्कार दैहिक शुद्धि एवं स्थान शुद्धि हेतु किये जाने वाले विधि-विधानों से सम्बन्धित है। इस संस्कार विधि का विवेचन करते हुए ग्रन्थकर्ता वर्धमानसूरि ने लिखा है कि अपने-अपने वर्ण के अनुसार निर्धारित दिनों के व्यतीत होने पर शुचिकर्म संस्कार करना चाहिए। इसके साथ यह भी बताया गया है कि ब्राह्मण १० वें दिन, क्षत्रिय १२ वें दिन, वैश्य १६ वें दिन और शुद्र एक महिने में शुचिकर्म संस्कार करते हैं। यह संस्कार कर्म प्रारम्भ करते समय प्रथम सोलह पुरुषों तक उनके वंशजों का आह्वान करना चाहिए, ऐसा उल्लेख किया गया है।
प्रस्तुत संस्कार विधि के अन्तर्गत एक महत्त्वपूर्ण कथन यह किया गया है कि सूतक के दिन पूर्ण होने पर उस दिन यदि आर्द्र नक्षत्र, सिंहयोनि नक्षत्र एवं गजयोनि नक्षत्र हों तो स्त्री को सूतक का स्नान नहीं करना चाहिए। साथ ही इन नक्षत्रों के नामों का उल्लेख करते हुए कहा है कि इन नक्षत्रों में स्नान करने पर प्रसव नहीं होता है।
८. नामकरण - संस्कार विधि- प्रस्तुत आठवें उदय में नामकरण संस्कार की विधि विस्तार पूर्वक कही गई है। इस संस्कार के अन्तर्गत यह बताया गया है कि यह संस्कार शुचिकर्म के दिन या उसके दूसरे या तीसरे दिन अथवा किसी शुभ दिन में शिशु के चंद्रबल को देखकर किया जाता है । प्रस्तुत विधि का अवलोकन करने से यह सिद्ध होता है कि इस संस्कार को सम्पन्न करने में ज्योतिषी की मुख्य भूमिका होती है। इसके साथ ही इसमें यह भी निर्दिष्ट हैं कि जन्म कुंडली के बारह ग्रहों एवं उसमें स्थित नवग्रहों का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। जन्म नक्षत्र के अनुसार निकाला गया नाम प्रथम कुलवृद्धा के कान में कहा जाता है। फिर परमात्मा के मंदिर में नाम का प्रकटीकरण किया जाता है। गुरु के समीप मंडली पट्ट का पूजन किया जाता है, गुरु की नवांगी पूजा की जाती है, गुरु के द्वारा ऊँकार, ह्रींकार, श्रींकार से युक्त वासचूर्ण प्रदान किया जाता है इत्यादि ।
६. अन्नप्राशन- संस्कार विधि- अन्नप्राशन संस्कार में शिशु के जन्म के पश्चात् उसे प्रथम बार अन्न का आहार कराया जाता है। आचार दिनकर में इस संस्कार की चर्चा करते हुए बताया गया है कि यह संस्कार बालक के जन्म से छठे मास में एवं बालिका के जन्म से पाँचवे मास में किया जाता है। इस संस्कार के लिए योग्य दिन, नक्षत्र, वार आदि का उल्लेख किया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि यह संस्कार सम्पन्न करने के लिए विविध प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं और ये व्यंजन जिनप्रतिमा, गौतमस्वामी की प्रतिमा, कुलदेवता एवं गौत्रदेवी की प्रतिमा के समक्ष चढ़ाये जाते हैं।
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