Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/149
प्रतिक्रमणविधिसंग्रह
जैसा कि इस कृति' के नाम से ही स्पष्ट होता है कि इसमें प्रतिक्रमण की विधियों का संग्रह हुआ है। यह कृति अपने आप में बहुउपयोगी है। विद्वद्सन्तों ने इसकी सराहना की है।
इस कृति का सम्पादन पं. कल्याणविजयजी गणि ने किया है। इसमें प्रतिक्रमण की जिन विधियों का संग्रह किया गया है उनके मूलपाठ एवं अर्थपाठ दोनों दिये गये हैं। यह प्रतिक्रमणसंग्रह चार परिच्छेदों में विभक्त है। पहला परिच्छेद- इस परिच्छेद में १. श्रमण सामाचारी और २. आवश्यकचूर्णि के अनुसार प्रतिक्रमण विधि दी गई है। दूसरा परिच्छेद- इसमें तीन प्रकार की प्रतिक्रमण विधियों का उल्लेख किया गया है - १. पाक्षिक चूर्ण्यानुसारी श्रमण प्रतिक्रमण विधि, २. हरिभद्रीय पंचवस्तुक-ग्रन्थोक्त प्रतिक्रमण विधि, ३. गाथा कदम्बकोक्त प्रतिक्रमण विधि तीसरा परिच्छेद- इस परिच्छेद में चार प्रकार की प्रतिक्रमण विधियों का वर्णन हुआ है- १. प्रतिक्रमणगर्भहेतु ग्रथित प्रतिक्रमण विधि, २. श्री पार्श्वऋषिसूरिकृत श्राद्ध प्रतिक्रमण विधि, ३. श्री चन्द्रसूरिकृत सुबोधासामाचारीगत प्रतिक्रमण विधि, ४. पौर्णमिकगच्छ की प्रतिक्रमण विधि। चौथा परिच्छेद- इस प्रकरण में भी चार प्रकार की प्रतिक्रमण विधियाँ कही गई हैं१. आचारविधि सामाचारीगत प्रतिक्रमण विधि, २. जिनवल्लभगणिकृता प्रतिक्रमण सामाचारी, ३. हरिभद्रसूरि रचित यतिदिनकृत्यगत प्रतिक्रमण विधि, ४. जिनप्रभसूरि कृत विधिमार्गप्रपागत प्रतिक्रमण विधि
सुस्पष्टतः इस संग्रहीत कृति के माध्यम से प्रतिक्रमण के प्राचीन और अर्वाचीन दोनों रूप स्पष्ट हो जाते हैं। अन्य विधि-विधानों के सम्बन्ध में भी इस तरह की कृतियाँ प्रकाशित और संशोधित होनी चाहिए ताकि प्रत्येक विधि-विधान का ऐतिहासिक विकास क्रम समग्रतया जाना जा सकें।
हमें जिनरत्नकोश (पृ. २५८-२६०) में से प्रतिक्रमणविधि से सम्बन्धित कुछ रचनाओं की जानकारी प्राप्त हुई हैं, उनमें से कुछैक अप्रकाशित हैं, तो कुछैक अज्ञातकृत हैं तो कुछ अनुपलब्ध हैं। प्रतिक्रमणसंग्रहणी - यह कृति १६६ पद्यों में निबद्ध है।
' यह कृति वि.सं. २०३० श्री मांडवला जैन संघ, मांडवला (राज.) में प्रकाशित है।
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