Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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142/षडावश्यक सम्बन्धी साहित्य
सम्बन्ध रखने वाले अनेक प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों का प्रतिपादन भी सर्वप्रथम इसी नियुक्ति में किया गया है। आवश्यकचूर्णि
यह चूर्णि मुख्य रूप से नियुक्ति का अनुसरण करते हुए लिखी गई है।' कहीं-कहीं पर भाष्य की गाथाओं का भी उपयोग किया गया है। यह चूर्णि प्राकृत की गद्यात्मक एवं पद्यात्मक शैली में लिखी गई है। किन्तु यत्र-तत्र संस्कृत के श्लोक, गधाश एवं पंक्तियाँ उद्धृत की गई हैं। भाषा में प्रवाह है। शैली भी
ओजपूर्ण है। इसमें कथानकों की भरमार है और इस दृष्टि से इसका ऐतिहासिक मूल्य भी अन्य चूर्णियों से अधिक है। विषय-विवेचन का जितना विस्तार इस चूर्णि में है उतना अन्य-चूर्णियों में दुर्लभ है। जिस प्रकार विशेषावश्यकभाष्य में प्रत्येक विषय पर सुविस्तृत विवेचन उपलब्ध होता है उसी प्रकार इसमें भी प्रत्येक विषय का विस्तारपूर्वक व्याख्यान किया गया है।
प्रारम्भ में उपोद्घात के रूप में मंगल की चर्चा की गई है। सामायिकविधि अधिकार में सामायिक का दो दृष्टियों से विचार किया गया है। नियुक्तिगत उद्देश, निर्गमादि छब्बीस दोषों पर विशेष विचार किया है। यथाप्रसंग वज्रस्वामी, आर्यरक्षित, आषाढ़भूति, अश्वमित्र, गंगसूरि आदि तथा श्रावक आनन्द, कामदेव आदि, शिवराजर्षि, गंगदत्त, दशार्णभद्र, इलापुत्र, दमदन्त, चिलातिपुत्र, धर्मरूचिअणगार, तेतलीपुत्र, निव-तिष्यगुप्त आदि के कथानक प्रस्तुत किये गये हैं। इसके साथ ही सामायिक सम्बन्धी अन्य आवश्यक बातों का विचार किया है; जैसे सामायिक के द्रव्यपर्याय, नयदृष्टि से सामायिक, सामायिक के भेद, सामायिक का स्वामी, सामायिक प्राप्ति का क्षेत्र, काल, दिशा आदि, सामायिक की प्राप्ति के हेतु, सामायिक की स्थिति, सामायिक वालों की संख्या, सामायिक का अन्तर आदि।
वन्दनविधि अधिकार में अनेक दृष्टान्त दिये गये हैं। वंद्य-वंदकसंबंध, वंद्यावंद्यकाल, वंदनसंख्या, वंदनदोष, वंदनकाल आदि का दृष्टान्त पूर्वक विचार किया गया है। प्रतिक्रमणविधि अधिकार में प्रतिक्रमणसूत्र (पगामसिज्झाय) का विस्तृत निरूपण किया है। इसमें एक से लेकर बत्तीस स्थानों का प्रतिपादन हैं। ग्रहण शिक्षा और आसेवना शिक्षा का उल्लेख किया है इस प्रसंग पर श्रेणिक, चेलणा, सुलसा, कोणिक, चेटक, उदायी, शकडाल, वररूचि, स्थूलभद्र आदि से
' यह चूर्णि दो भागों में है। इसका पूर्वभा. सन् १६२८ में और उत्तरभा. सन् १६२६ में श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम से प्रकाशित हुआ है। २ देखिए, आवश्यकनियुक्ति गा. १४०-४१
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