Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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सम्बन्धित अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक आख्यानों का संग्रह किया है।
कायोत्सर्गविधि अधिकार में प्रायः निर्युक्तिगत विषयों का ही विवेचन किया गया है। इसके साथ क्षामणा विधि पर प्रकाश डाला गया है। प्रत्याख्यानविधि अधिकार में प्रत्याख्यान के भेद, श्रावक के भेद, बारहव्रत और उनके अतिचार, प्रत्याख्यान के गुण और आगार आदि का विविध उदाहरणों के साथ व्याख्यान किया गया है। बीच-बीच में यत्र-तत्र अनेक गाथाएँ एवं श्लोक भी उद्धृत किये गये हैं ।
आवश्यकचूर्णि के इस संक्षिप्त परिचय से स्पष्ट है कि चूर्णिकार ने आवश्यकनिर्युक्ति में निर्दिष्ट सभी विषयों का विस्तार पूर्वक विवेचन किया है तथा विवेचन को सरल - सुबोध - सरस एवं स्पष्ट बनाने के लिए अनेक प्राचीन ऐतिहासिक एवं पौराणिक आख्यान भी उद्धृत किये हैं । यह सामग्री भारतीय सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । ' पंचप्रतिक्रमणसूत्र - विधि सहित ( श्रावक प्रतिक्रमण )
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 143
इस पुस्तक' में पाँच प्रकार की प्रतिक्रमण विधि कही गई है। प्रतिक्रमण के पाँच प्रकार ये हैं १. रात्रिक, २. दैवसिक, ३. पाक्षिक, ४. चातुर्मासिक, और ५. सांवत्सरिक । यह पुस्तक अचलगच्छीय परम्परा से सम्बन्धित है। इसमें अचलगच्छ आम्नाय को मानने वाले गृहस्थ की अपेक्षा प्रतिक्रमण विधियों का संकलन हुआ है। इस कृति में निम्न विधियाँ भी दर्शायी गयी है।
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१. देववंदन विधि, २ . जिनमंदिरदर्शन विधि, ३. द्रव्यपूजा विधि, ४ . भावपूज - (चैत्यवंदन) विधि, ५. मध्याह्कालीन देववंदन विधि तथा संध्याकालीन देववंदन विधि, ६. सामायिक ग्रहण एवं सामायिक पारन विधि ७. देशावगासिकव्रत ग्रहण विधि, ८. पौषधग्रहण विधि इत्यादि ।
इसके अन्त में पर्वदिन, पर्वतिथि एवं विशिष्ट तीर्थ सम्बन्धी चैत्यवन्दन, स्तुति, स्तवनादि भी दिये गये हैं। इसके साथ ही गौतमस्वामी, शांतिनाथप्रभु, सोलह सती आदि के छंद हैं। जन्म-मरण एवं ऋतुधर्म संबंधी सूतक विचार, चौबीस तीर्थंकरों का कोष्ठक भी दिया गया है।
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आधार - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भा. ३ पृ. २७४-२८२
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यह पुस्तक चंदुलालगांगजी फेमवाला, श्री क.वि. ओ. दे. जैन महाजन, मुंबई से प्रकाशित है। यह पाँचवां संस्करण है।
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