Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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138/षडावश्यक सम्बन्धी साहित्य
वीं शती में रचित की है। ६. नियुक्ति चूर्णि और वृत्ति- यह रचना अज्ञातसूरि की है। १०. नियुक्ति अवचूर्णि- तपागच्छीय सोमसुन्दर सूरि के प्रशिष्य अमरसुन्दर गणि के शिष्य धीरसुन्दर ने १५ वीं शती में इसकी रचना की है। ११. नियुक्तिचूर्णि- यह जिनदासगणिमहत्तर द्वारा विरचित है तथा १३६०० श्लोक परिमाण की है। १२. विशेषावश्यकभाष्य- इस भाष्य के रचयिता जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण है। यह भाष्य सामायिक नामक प्रथम अध्ययन पर रचा गया है। इसमें ३६०२ गाथाएँ हैं। १३. चूर्णि- यह रचना श्री नेमिचन्द्र के प्रशिष्य शांतिसूरि के शिष्य विजयसिंह की है। इसका श्लोक परिमाण ४५६० है तथा यह १२ वीं शती (११८३) में लिखी गई है। १४. चूर्णि- इसके रचनाकार यशोदेवगणि है और यह २१०० श्लोक परिमाण की है। इसका अपर नाम प्राकृतवृत्ति है। १५. लघुवृत्तिगणधरगच्छीय शिवप्रभसूरि के शिष्य तिलकाचार्य ने इसकी रचना १३ वीं शती (१२६६) में की है। यह लघुवृत्ति १२३२५ श्लोक परिमाण वाली है। १६. प्रदेश व्याख्या और टिप्पणक- यह मलधारीगच्छीय अभयदेव के शिष्य हेमचन्द्र द्वारा लिखी गई है। १७. प्रदेशव्याख्याटिप्पण- मलधारीगच्छीय हेमचन्द्र के शिष्य चन्द्रसूरि ने यह टिप्पणक १३ वीं शती के पूर्वार्ध में लिखा है। १८. वन्दारूवृत्ति टीका- यह टीका श्रावक अनुष्ठान विधि और वन्दारूवृत्ति के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी रचना तपागच्छीय जगच्चन्द्र के शिष्य देवेन्द्रमुनि ने की है। १६. लघुवृत्ति- यह रचना कुलप्रभसूरि की है। २०. वृत्ति- यह रचना महितिलक के शिष्य राजवल्लभ ने की है। २१. व्याख्या- यह ग्रन्थ १७ वीं शती (१६६७) का है। इसकी रचना तपागच्छीय विजयसिंहसूरि के प्रशिष्य उदयरूचि के शिष्य मुनि हितरूचि ने की है। २२. वृत्ति- यह रचना अज्ञातकर्तृक है तथा दीपिका नाम से प्रसिद्ध १२७६५ श्लोक परिमाण की है। २३. वृत्ति- यह अज्ञातकर्तृक है। २४. टीका (गुजराती)यह टीका खरतरगच्छीय जिनचन्द्रसरि के शिष्य तरूणप्रभसरि की है। इसका रचनाकाल १५ वीं शती का पूर्वार्ध है। यह पुरानी गुजराती भाषा में निबद्ध है। २५. बालावबोध- यह तपागच्छीय जयचन्द्र के शिष्य हेमहंसगणि की रचना है इसका रचनाकाल १६ वीं शती (१५२१) का पूर्वार्ध है। यह भी पुरानी गुजराती भाषा में है। २६. बालावबोध- इस कृति का रचनाकाल वि.सं. १५२५ है। यह रचना खरतरगच्छीय जिनचन्द्रसूरि के प्रशिष्य रत्नमूर्तिगणि के शिष्य मेरुसुंदर की है तथा गुजराती भाषा में है। २७. बालावबोध- यह अज्ञातकर्तृक और पुरानी गुजराती भाषा में है। यह ग्रन्थ १५ वीं शती के पूर्व का है। २८. बालावबोधसंक्षेपअर्थ- यह कृति १५ वीं शती (१४६८) में रची गई है। इस कृति की रचना अचलगच्छीय जयकेशरसूरि के शिष्य महेशसागर ने की है। २६. विषमपदपर्याय- यह अज्ञातकर्तृक रचना है।
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