Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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80/श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य
सड्ढदिणकिच्च (श्राद्धदिनकृत्य)
यह रचना तपागच्छीय श्री जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य देवेन्द्रसूरि की है। यह ग्रन्थ जैन महाराष्ट्री प्राकृत भाषा के ३४४ पद्यों में निबद्ध है। इसमें कृति के अपने नाम के अनुसार श्रावकजीवन के दैनन्दिन कृत्यों एवं अनुष्ठानों पर विचार किया गया है। टीका- इस पर १२८२० श्लोक-परिमाण एक स्वोपज्ञ वृत्ति है। इसके अतिरिक्त एक अज्ञातकर्तृक अवचूरि भी है। सड्ढदिणकिच्च (श्राद्धदिनकृत्य)
यह कृति' जैन महाराष्ट्री में विरचित है। इसमें ३४१ पद्य हैं। यह कृति उक्त 'सढढिणकिच्च' है या अन्य? यह विषय विचारणीय है। यह रचना हमें प्राप्त नहीं हुई है किन्तु 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' के अनुसार प्रस्तुत कृति की गाथा २ से ७ में श्रावक के अट्ठाईस कर्त्तव्य गिनाये गये हैं; जैसे कि १. नवकार गिनकर श्रावक का जागृत होना, २. 'मैं श्रावक हूँ' यह बात याद रखना, ३. 'मैने अणुव्रत आदि कितने व्रत लिये हैं' इसका विचार करना, ४. मोक्ष के साधनों का विचार करना, ५. दिन में त्रिकाल पूजा करना इत्यादि।
वस्तुतः यह कृति श्रावक जीवन सम्बन्धी विधियों एवं कर्तव्यों का निरूपण करती है। बालावबोध - इस पर रामचन्द्रगणि के शिष्य श्री आनन्दवल्लभ ने वि.सं. १९८२ में एक बालावबोध लिखा है। स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षागत-श्रावकधर्म
___इस कृति के रचयिता स्वामीकार्तिकेय है तथा इस कृति का नाम 'अणुवेक्खा' है। यह जैन महाराष्ट्री प्राकृत के ६१ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचनाकाल विक्रम की दूसरी-तीसरी शती है। इसमें श्रावकधर्मविधि का विस्तृत वर्णन हुआ है। इसमें धर्म के दो विभाग कर बताकर परिग्रहधारी गृहस्थों के धर्म के बारह भेद बताये हैं- १. सम्यग्दर्शनयुक्त, २. मद्यादि स्थूल दोष रहित, ३. व्रतधारी, ४. सामायिकव्रती, ५. पौषधव्रती, ६. प्रासुकआहारी, ७. रात्रिभोजनविरत, ८. मैथुनत्यागी, ६. आरम्भत्यागी, १०. संगत्यागी, ११.
' यह कृति आनन्दवल्लभकृत हिन्दी बालावबोध के साथ, सन् १८७६ में 'बनारस जैन प्रभाकर' मुद्राणालय में प्रकाशित हुई है। ' यह कृति 'श्रावकाचारसंग्रह' भा. १ में हिन्दी भाषान्तर सहित प्रकाशित है। 'श्रावकाचारसंग्रह' नामक यह ग्रन्थ सन् १९८८ में, जैन संस्कृति-संरक्षक-संघ, सोलापुर (महा.) से प्रकाशित हुआ
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