Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 121
यतिदिनकृत्य
यह हरिभद्रसूरि की कृति मानी जाती है। इसमें श्रमणों की दैनन्दिन प्रवृत्तियों एवं आवश्यक विधि-विधानों के विषय में निरूपण हुआ है। विशेषशतकम्
यह ग्रन्थ' खरतरगच्छीय अकबरप्रतिबोधक जिनचन्द्रसूरि के प्रशिष्य एवं सकलचन्द्रगणि के शिष्य समयसुन्दरगणि का है। यह संस्कृत के १०० पद्यों में निबद्ध है। इस कृति का संशोधन श्री कृपाचन्द्रसूरि के शिष्य मुनिसुखसागर जी द्वारा किया गया है। इसमें मुनि जीवन से सम्बन्धित अनेक विषयों को समाविष्ट किया गया है। उसमें विधि-विधान विषयक कुछ स्थल ही प्राप्त होते हैं उनका नामनिर्देश निम्न है -
१. साधुओं के प्रासुक (अचित्त) जल में उत्पन्न हुए पूतरादि जीवों को परिष्ठापित करने की विधि। २. साधुओं के लिए रात्रि में विहार करने की आपवादिक विधि ३. साधुओं के लिए दिन में शयन करने सम्बन्धी आपवादिक विचार ४. साधुओं के लिए आपवादिक रूप से पाँच प्रकार की पुस्तक ग्रहण करने की विधि ५. सचित्त- अचित्त लवण और पानी को परिष्ठापित करने की विधि ६. अपवाद से सचित्त आधाकर्मी आहार ग्रहण करने की विधि ७. साधुओं की कल्प्य अकल्प्य वस्त्र विधि ८. शय्यातर के घर से पीठ फलकादि को ग्रहण करने की आपवादिक विधि ६. गच्छवासी साधुओं की वस्त्र प्रक्षालन विधि | इस तरह इस ग्रन्थ में कुल नौ प्रकार की विधियाँ कही गई हैं। इसमें विषय की स्पष्टता के लिए आगमपाठ उद्धृत किये गये हैं यह इस ग्रन्थ की अपनी बहुमूल्य विशिष्टता है। सामाचारीप्रकरण
इस ग्रन्थ के रचयिता महोपाध्याय यशोविजयजी है । यह संस्कृत के १०१ पद्यों में निबद्ध है। प्रस्तुत कृति चन्द्रशेखरीया नाम की संस्कृत टीका और गुजराती विवेचन के साथ प्रकाशित है।
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यह ग्रन्थ जैन मुनियों की नित्य नैमित्तिक सामाचारी से सम्बन्धित है। इसमें इच्छाकार, मिच्छाकार, तथाकार, आवस्सही, निसीहि, आपृच्छा, प्रतिपृच्छा, छंदना, निमंत्रणा और उपसंपदा नाम की ये दस सामाचारियाँ वर्णित हुई हैं। जैन
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यह कृति वि.सं. १६७३ में रामचन्द्र येसु शेडगे मुंबई द्वारा प्रकाशित की गई है।
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यह ग्रन्थ वि.सं. २०६० में 'कमलप्रकाशन ट्रस्ट, जीवंतलाल प्रतापशी संस्कृति भवन, २७७७, निशापोल झवेरवाड़, रीलिफ रोड़ अहमदागाद' से प्रकाशित हुआ है।
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