Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________
में बोली जाने वाली ठेठ ढूंढारी भाषा का प्रयोग है। इनका समय १७ वीं शती के बाद का निश्चित होता है। प्रस्तुत कृति' में श्रावकाचार विधि-विधान सम्बन्धी निम्न विषय उपलब्ध होते हैं बारह व्रत, ग्यारह प्रतिमा, बारहव्रतों के अतिचार, रात्रिभोजन के दोष, अनछना पानी के दोष, रसोई बनाने की विधि, शहद, कांजी, अचारभक्षण के दोष, रजस्वला स्त्री के दोष, वस्त्र धुलाने एवं वस्त्र रंगने के दोष, मन्दिरनिर्माण का फल, प्रतिमा निर्माण का फल, दशलक्षणधर्म, रत्नत्रयधर्म, साततत्त्व, बारहतप, समाधिमरण इत्यादि । इस कृति की अपनी कई विशेषताएँ हैजैसे कि सभी श्रावकाचार पद्य में रचे गये मिलते हैं, किन्तु यह गद्य में रचा गया है साथ ही पानी छानने, रसोई आदि बनाने से लेकर समाधिमरण पर्यंत तक की सभी क्रियाओं का इसमें विधिवत् वर्णन हुआ है।
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 8 1/85
-
Jain Education International
१
यह कृति सन् १६८७ में, 'श्री दि. जैन मुमुक्षु मण्डल, जैन मन्दिर, मार्ग चौक, भोपाल' से प्रकाशित हुई है।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org