Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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50 / श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य
पर पधारने की सूचना मिलने पर राजा श्रेणिक का भगवान् की वन्दना को जाने का और समवसरण का विस्तृत वर्णन है । तीसरे अधिकार में श्रेणिक का भगवान् की वन्दना-स्तुति करके नियमादि के विषय में पूछने पर गौतम गणधर द्वारा धर्म का उपदेश प्रारम्भ किया गया है। चौथे अधिकार में सम्यक्त्व और उसके महत्व का वर्णन है। पाँचवें अधिकार में प्रथम दर्शनप्रतिमा का वर्णन और अष्टमूलगुणों का निरूपण तथा काकमांसत्यागी खदिरसार का कथानक है। छट्ठे अधिकार में पंच अणुव्रतों का, सातवें अधिकार में गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों का वर्णन कर आशाधर प्रतिपादित दिनचर्या विधि का निर्देश किया गया है।
आठवें अधिकार में सामायिक प्रतिमा से लेकर ग्यारहवीं प्रतिमा का वर्णन है। नौवें अधिकार में अणुव्रतों के रक्षणार्थ समितियों का, चार आश्रमों का, इज्या, वार्तादि षट्कर्मों का, पूजन के नाम स्थापनादि छः प्रकारों का और त्ि आदि का विस्तृत वर्णन है। दसवें अधिकार में सल्लेखना का वर्णन है। सूतक-पातक का वर्णन सर्वप्रथम इसी में मिलता है। स्पष्टतः इस कृति की रचना क्रमबद्ध योजना के साथ हुई है। इसमें प्रारम्भ से लेकर अन्त तक गृहस्थ जीवन की सम्पूर्ण आचारविधि एवं धर्मविधि का वर्णन हुआ है। यह कृति दिगम्बर परम्परानुसार रची गई है। धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचार
इस श्रावकाचर की रचना मुनि ब्रह्मनेमिदत्त ने की है। यह कृति ' संस्कृत भाषा के ३६४ पद्यों में निबद्ध है। अन्य कृतियों के आधार पर इनका समय वि. सं. की १६ वीं शती का उत्तरार्ध है। इसमें पाँच अधिकार है।
प्रथम अधिकार में सम्यग्दर्शन का स्वरूप बताकर उसके आठ अंगों का, २५ दोषों का और सम्यक्त्व के भेदों का वर्णन है। दूसरे अधिकार में सम्यक्ज्ञान और चारों अनुयोगों का स्वरूप बताकर द्वादशांगश्रुत के पदों की संख्या का वर्णन है । तीसरे में आठमूल गुणों का, चौथे में बारहव्रतों का वर्णनकर मंत्र जप, जिनबिम्ब और जिनालय के निर्माण का फल बताकर ११ प्रतिमाओं का निरूपण किया गया है। पाँचवे अधिकार में सल्लेखना का वर्णन कर इसे समाप्त किया है।
यहाँ ज्ञातव्य हैं कि श्री ब्रह्मनेमिदत्त ने परिग्रहपरिमाणव्रत के अतिचार स्वामी समन्तभद्र के समान ही कहे हैं तथा रात्रिभोजन त्याग को छठा अणुव्रत कहा है। इस श्रावकाचार में ३५ गाथाएँ और 'उक्तं च ' कहकर श्लोक उद्धृत
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इसकी प्रकाशित प्रति देखने में नहीं आई हैं किन्तु 'श्रावकाचारसंग्रह' भा. २ में इसका संकलन अवश्य हुआ है। इस कृति का हिन्दी अनुवाद पं. हीरालाल जैन ने किया है।
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