Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 53
पर एक भाषा- टीका लिखी है। दूसरी भाषा टीका पं. भूधर ने वि.सं. १८७१ में रची है।
पुरुषार्थनुशासनगत - श्रावकाचार
इस ग्रन्थ के रचनाकार पं. गोविन्द है । यह रचना' संस्कृत पद्य में की गई है। इसका रचनाकाल वि.सं. की सोलहवीं शती का पूर्वार्ध है। यह कृति अपने नाम के अनुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का वर्णन करती है तथा इनका किस प्रकार पालन करना चाहिये? इसका अनुशासनात्मक विधान करने वाला होने से ग्रन्थ का नाम 'पुरुषार्थानुशासन' रखा गया है।
इसमें धर्मपुरुषार्थ का वर्णन श्रावक और मुनि के आश्रय से किया गया है । उसमें भी श्रावकधर्म का वर्णन छः अधिकारों के साथ हुआ है। इसमें अधिकार या परिच्छेद के स्थान पर 'अवसर' नाम का प्रयोग किया है।
प्रथम अवसर में चारों पुरुषार्थों की विशेषता का दिग्दर्शन है। दूसरे अवसर में राजा श्रेणिक का भ. महावीर के वन्दनार्थ जाना और 'मनुष्य जन्म की सार्थकता के लिए किस प्रकार का आचरण करना चहिए' इस प्रकार का प्रश्न पूछने पर गौतम गणधर द्वारा पुरुषार्थों के वर्णन रूप कथा सम्बन्ध का निरूपण है । तीसरे अवसर में सम्यग्दर्शन और दर्शनप्रतिमा सम्बन्धी विस्तृत वर्णन है। चौथे अवसर में पाँच अणुव्रत, तीनगुणव्रत और आदि के दो शिक्षाव्रतों का वर्णन व्रतप्रतिमा के अन्तर्गत किया गया है। पाँचवे अवसर में सामायिक प्रतिमा के अन्तर्गत सामायिक का स्वरूप बताकर उसे द्रव्य, क्षेत्रादि की शुद्धिपूर्वक करने का विधान है। इसके साथ ही पिण्डस्थ आदि धर्मध्यान का विस्तृत निरूपण करके उनके चिन्तन का विधान किया गया है। छठे अवसर में चौथी पोषधप्रतिमा से लेकर ग्यारहवीं प्रतिमा तक की आठ प्रतिमाओं का बहुत सुन्दर एवं विशद वर्णन किया गया है। अनुमति त्यागी किस प्रकार के कार्यों में अनुमति न दें और किस प्रकार के कार्यों में देवे इसका वर्णन पठनीय है। अन्त में समाधिमरण विधि का निरूपण किया गया है।
पूज्यपाद - श्रावकाचार
यह श्रावकाचार जैनेन्द्रव्याकरण, सर्वार्थसिद्धि आदि प्रसिद्ध ग्रन्थों के प्रणेता श्री पूज्यपाददेवनन्दि का रचा हुआ नहीं है किन्तु इस नाम के किसी भट्टारक या अन्य विद्वान् का रचा हुआ जान पड़ता है। यह कृति संस्कृत पद्य में
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यह ग्रन्थ अभी तक स्वतंत्ररूप में अप्रकाशित है। इस ग्रन्थ का 'धर्मपुरुषार्थ' वाला भा. श्रावकाचार संग्रह भा. ३ में संकलित किया गया है।
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