Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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76/श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य
इस ग्रन्थ के मंगलाचरण रूप प्रथम गाथा में महावीर प्रभु को नमस्कार करके श्रावक के दिवस सम्बन्धी कृत्यों को आगम के अनुसार कहने की प्रतिज्ञा की गई है। प्रशस्तिरूप गाथाओं में ग्रन्थकार ने यह कहा है कि मेरे द्वारा श्रावकदिनकृत्यविधि संक्षेप में कही गई है। भाव श्रावकों की वह विधि विस्तार से जाननी चाहिये और उसके लिए भद्रबाहुस्वामी, हरिभद्रसूरि प्रमुख आचार्यों के ग्रन्थों को पढ़ना चाहिये। अन्त में इस कृति का फल बताते हुए उल्लेख किया है कि जो भव्यश्रावक 'श्रावकदिनकृत्य' को पढ़ता है, सुनता है, तदनुसार आचरण करता है वह संसार रूपी तीक्ष्ण दुखों का नाश कर लेता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रतिपादित १६ द्वारों की विषयवस्तु संक्षेप में इस प्रकार है -
पहलाद्वार - इस द्वार में नमस्कारमन्त्र की चर्चा की गई है क्योंकि श्रावक को प्रातःकाल उठने के साथ ही नमस्कारमन्त्र का स्मरण करना चाहिये। सामान्यतः इसमें नमस्कार की विधि, नमस्कारमंत्र पढ़ने की विधि, नमस्कारमंत्र का माहात्म्य, नमस्कार मंत्र को विधिपूर्वक पढ़ने का उपदेश एवं नमस्कार मंत्र के स्मरण का सोदाहरण फल बताया गया है।
दूसरा द्वार - इस दूसरे द्वार में श्रावक को प्रतिदिन प्रातःकाल में क्या स्मरण करना चाहिये उसका निर्देश दिया गया है एवं विधि बतायी गई है। जैसे द्रव्य से- 'मैं साधु हूँ या गृहस्थ?', क्षेत्र से- 'मैं आर्यदेश में उत्पन्न हुआ हूँ या नहीं', काल से- 'मैं प्रातः काल में जागत बना हुआ हूँ या नहीं?', भाव से'किस उग्रादि कुल में उत्पन्न हुआ हूँ?', विशेष रूप से 'मैं सम्यग्दृष्टि सहित व्रतनियम धारी हूँ या नहीं?' इस तरह प्रत्येक श्रावक को प्रातःकाल में उक्त प्रकार का चिन्तन अवश्य करना चाहिये।
तीसरा द्वार - इस द्वार में श्रावक के बारहव्रत सम्बन्धी १३ अरब, ८४ करोड़, १२ लाख, ६७ हजार, दो सौ भंग (विकल्प) कहे गये हैं। ये विकल्प तीन करण और तीन योग पूर्वक होते हैं।
चौथा द्वार - इस द्वार में उल्लेख हैं कि 'तप विशिष्ट निर्जरा का हेतु है' इसलिए रात्रिक प्रतिक्रमण में कायोत्सर्ग का परिपालन करते हुए छह मासिकतप का चिन्तन करना चाहिये और वह चिन्तन किस प्रकार करना चहिये उसकी विधि कही गई है।
पाँचवा द्वार - यह द्वार द्रव्य पूजा और भाव पूजादि से सम्बन्धित है। इस द्वार में सर्वप्रथम द्रव्यपूजा करने वाला श्रावक गृहबिम्ब का प्रमार्जन किस प्रकार करें उसकी विधि बतायी गई है। उसके बाद द्रव्यपूजा विधि, द्रव्यपूजा के प्रकार और द्रव्यपूजा का फल सोदाहरण बताया गया है। भावपूजा (चैत्यवन्दन)
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