Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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करने के पूर्व मानव जीवन की दुर्लभता, दैहिक जीवन की क्षणिकता, संसार की नश्वरता आदि का चिन्तन करना चाहिये। इसमें शुभ विचार करने से होने वाले विशिष्ट लाभ की भी चर्चा की गई है।
३. विहारकृत्य विधि इसमें देशाटन जाने से पूर्व एवं देशाटन करते समय श्रावक के लिए अवश्य करने योग्य कार्यों का निर्देश हैं जैसे - देव, गुरु, धर्म की आराधना करना एवं आहारादि के द्वारा गुरु की भक्ति करना आदि।
टीका - इस ग्रन्थ पर 'दिक्प्रदा' नाम से स्वोपज्ञ संस्कृत टीका रची गई है। इसमें अहिंसाणुव्रत और सामायिकव्रत की चर्चा करते हुए आचार्य ने अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर दिया है। टीका में जीव की नित्यानित्यता आदि दार्शनिक विषयों की भी गम्भीर चर्चा उपलब्ध होती है।
जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 69
जैन परम्परा में श्रावकाचार, श्रावकधर्म, श्रावकव्रतग्रहण आदि विषय पर अनेक रचनाएँ निर्मित हुई हैं उनमें से कुछ कृतियों का विवरण इस प्रकार है' श्रावकप्रायश्चित्त-विधि
यह कृति श्री हंससागरजी की लायब्रेरी में मौजूद है। इस पर तिलकाचार्य ने टीका रची है।
श्रावकप्रायश्चित्त
यह कृति २० गाथाओं में तिलकाचार्य ने रची है।
श्रावकदिनकृत्य
यह ३६४ श्लोक परिणाम है इसकी रचना गुणसागर के शिष्य ने की है। श्रावकदिनकृत्य
यह कृति ५ गाथाओं में गुम्फित है।
श्रावकधर्मतन्त्र
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यह कृति श्री हरिप्रभसूरि के द्वारा १२० गाथाओं में रची गई है। श्री मानदेवसूरि ने इस पर टीका लिखी है।
श्रावकधर्मविधि
इसके कर्त्ता सिंहप्रभसूरि के शिष्य श्री धर्मचन्द्रसूरि है।
जिनरत्नकोश पृ. ३८८-३६५
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