Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 51
किये गये हैं। इसमें सबसे अधिक उद्धृत दोहे 'सावयधम्म दोहा' के हैं।
इस श्रावकाचार की अन्तिम प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि भट्टारक श्री विद्यानन्दि के पट्ट पर भट्टारक मल्लिभूषण हुए। उनके शिष्य मुनि सिंहनन्दि हुए और उनके शिष्य मुनि ब्रह्मनेमिदत्त थे।
श्री पद्मकृत - श्रावकाचार
यह श्रावकाचार हिन्दी की छन्दोबद्ध शैली में है।' इसकी रचना श्रीपद्म कवि ने की है। इसका रचना - समय वि.सं. १६१५ है । यह कृति २७५० श्लोक परिमाण है और इसे छब्बीस प्रकार के रासों में रचा गया है।
श्रीपद्मकवि ने जिन आचार्यों के श्रावकाचारों के आधार पर अपने श्रावकाचार की रचना की है उसमें स्वामी समन्तभद्र का रत्नकरण्डक, वसुनन्दि का श्रावकाचार, पं. आशाधर का सागारधर्मामृत और सकलकीर्ति का श्रावकाचार प्रमुख है। तदुपरान्त भी इसमें श्रावक की त्रेपन क्रियाओं का वर्णन विस्तार के साथ किया गया है।
इस श्रावकाचार के प्रारम्भ में मंगलाचरण और श्रावकाचार विधि वर्णन के लिए माँ शारदा से प्रार्थना की गई है। उसके बाद राज श्रेणिक द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर गौतम गणधर ने गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं का निरूपण किया है। उसमें सम्यक्त्व एवं सम्यक्त्व के अंगों का, सप्तव्यसनों के त्याग का, जलगालन और उसकी विधि का, बारहव्रतों का एवं उनमें प्रसिद्ध पुरुषों के कथानकों का, ग्यारह प्रतिमाओं का, बारह प्रकार के तपों का, चार प्रकार के ध्यान का, मन्त्रजाप की विधि और विभिन्न अंगुलियों से जाप के फल का और समाधिमरण आदि का विवेचन प्रमुख रूप से किया गया है।
पद्मचरितगत - श्रावकाचार
जैन परम्परा में मर्यादा पुरूषोत्तम राम की मान्यता त्रेसठशलाका पुरुषों में है। उनका एक नाम पद्म भी था। जैन पुराणों एवं चरितकाव्यों में यही नाम अधिक प्रचलित रहा है। जैन काव्यकारों ने राम का चरित्र पउमचरियं, पद्मपुराण, पद्मचरित आदि अनेक नामों से प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं में प्रस्तुत किया है। इसी श्रृंखला में इस ग्रन्थ की रचना आचार्य रविषेण ने की है। यह कृ ति जैन समाज में 'पद्मपुराण' नाम से प्रसिद्ध है। यह रचना संस्कृत के १२२०२ पद्यों में गुम्फित है। इसमें ८५ पर्व हैं। इसका रचना समय वि.सं. की आठवीं शतका पूर्वार्ध है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के चौदहवें पर्व में श्रावकधर्म का वर्णन आया है। उसमें
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