Book Title: Jain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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46/श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य
दूसरे उद्देश में सम्यग्ज्ञान का स्वरूप बताकर मतिज्ञान आदि पाँच ज्ञानों का वर्णन किया गया है। तीसरे उद्देश में चारित्र का स्वरूप बताकर, विकल चारित्र का वर्णन ग्यारह प्रतिमाओं को आश्रय करके किया गया है। इसी के अन्त में विनय, वैयावृत्य, पूजन और ध्यान के प्रकारों का भी वर्णन है। इसमें सप्ततत्त्वों का, श्रावक के बारह व्रतों का, पूजन के भेद और पिण्डस्थ आदि ध्यानों का वर्णन वसुनन्दि श्रावकाचार की गाथाओं के संस्कृत छायानुवाद के रूप में श्लोकों द्वारा किया गया है।' इस प्रकार इस कृति के अध्ययन से ज्ञात होता है कि गुणभूषणजी ने पूर्व रचित श्रावकाचारों का अनुकरण अवश्य किया है फिर भी इसकी अपनी यह विशेषता हैं कि इन्होंने अपनी प्रत्येक बात को संक्षेप में सुन्दर ढंग से कही है।
इस श्रावकाचार के प्रत्येक उद्देश के अन्त में पुष्पिका दी गई है उससे सचित होता है कि ग्रन्थकार ने इस श्रावकाचार का नाम 'भव्यजन-चित्तवल्लभ श्रावकाचार' रखा है और नेमिदेव के नाम से अंकित किया है।' चारित्रप्राभृतगत-श्रावकाचार
इतिहासज्ञों के मत से पाहुडसूत्रों के रचयिता श्री कुन्दकुन्दाचार्य है। दिगम्बर परम्परा में उनका सर्वोपरि स्थान है। आ. कुन्दकुन्द की रचनाएँ प्राचीन मानी जाती है। कहा जाता है कि उन्होंने बारहवें दृष्टिवाद के अनेकों पूर्वो का दोहन करके अनेक पाहुड रचे थे। उनमें से ८४ पाहुड़ ही प्रसिद्ध है। उनमें भी वर्तमान में २०-२२ उपलब्ध हैं। उनके नाम ये हैं - १. समयसार २. पंचास्तिकाय ३. प्रवचनसार ४. नियमसार ५. दंसणपाहुड़ ६. चारित्तपाहुड़ ७. सुत्तपाहुड़ ८. बोधपाहुड़ ६. भावपाहुड़ १०. मोक्खपाहुड़ ११. लिंगपाहुड़ १२. सीलपाहुड़ १३. बारस-अणुवेक्खा १४. रयणसार १५. सिद्धभक्ति १६. श्रुतभक्ति १७. चारित्रभक्ति १८. योगिभक्ति १६. आचार्यभक्ति २०. निर्वाणभक्ति २१. पंचगुरुभक्ति २२. तीर्थकरभक्ति। इनमें से 'चारित्तपाहुड़' के अन्तर्गत श्रावकाचार का वर्णन विकल चारित्र के आधार पर किया गया है। उनमें ग्यारह प्रतिमाओं का एवं बारह व्रतों का संक्षिप्त निरूपण हुआ है। आ. कुन्दकुन्द ने देशावगासिक का शिक्षाव्रत में उल्लेख न करके सल्लेखना को चौथा शिक्षाव्रत माना है यह विचारणीय बिन्दू है? यह प्राभृत प्राकृत की मात्र सात गाथाओं में निबद्ध है। चारित्रासारगत-श्रावकाचार
प्रस्तुत कृति के प्रणेता श्री चामुण्डराय है। इन्होंने मुनि और श्रावकधर्म
' देखिए- श्रावकाचार संग्रह, भा. ४, पृ. ३६
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