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लोकविभाग और तिलोयपण्णत्ति
जयधवला टीकामें यतिवृषभको कषाय-प्राभृतका वृत्ति-सूत्रकर्ता लिखकर उनसे वरकी याचना की है-“ सो वित्तिसुत्तकत्ता जइवसहो मे वरं देउ।" चूर्णि-सूत्र और वृत्ति-सूत्र पर्यायवाची मालूम पड़ते हैं । __ जयधवलामें ( मंगलाचरणमें ) भी कहा है कि गुणधर आचार्यके मुखसे निकली हुई गाथाओंका अर्थ आर्यमंक्षु और नागहस्तिने अवधारण किया और उनसे सीखकर यतिवृषभने उनपर वृत्ति सूत्र लिखे ।
धवला सम्पादक प्रो० हीरालालजीने अपनी भूमिका बतलाया है कि धवलामें कई जगह यतिवृषभके मतका उल्लेख किया गया है। हमारी समझमें यह मत कषाय-प्राभृतकी वृत्तिका ही होगा ।
धवलाकारने ' तिलोयपण्णत्ति' का भी अनेक जगह उल्लेख किया है और उसकी बहुत-सी गाथायें उद्धृत की हैं।
ऊपर उद्धृत की हुई तिलोयपण्णत्तिकी ५१ वीं पूरी गाथाका अर्थ ठीक ठीक नहीं लगता। गाथाके उत्तरार्धके अनुसार तिलोयपण्णात्त आठ हजार श्लोक प्रमाण है और पूर्वार्धसे यह अभिप्राय जान पड़ता है कि यह प्रमाण उतना ही है जितना चूर्णि-ग्रन्थका और षट्करणस्वरूपका एकत्र करनेसे होता है। चूंकि इन्द्रनन्दिने कषायप्राभृतके चूर्णि-सूत्रका परिमाण छह हजार श्लोक बतलाया है, इसलिए षट्करण-स्वरूपका परिमाण दो हजार श्लोक होगा।
यतिवृषभका समय यतिवृषभ कब हुए हैं, इसका बिल्कुल ठीक निर्णय करना तो बहुत कठिन है, फिर भी हम यह कह सकते हैं कि तिलोयपण्णत्ति ग्रन्थ सर्वनन्दिके प्राकृत 'लोक-विभाग' से बादका बना हुआ है। क्योंकि तिलोयपण्णत्तिकी काल-गण. १ 'यतिवृषभोपदेशात् सर्वघातिकर्मणां' इत्यादि । -धवला अ० ३०२
एसो दंसणमोहणीयउवसामओत्ति जइवसहेण भणिदं । -धवला अ० ४२५ २ तिरियलोगो त्ति तिलोयपण्णत्तिसुत्तादो।-धवला अ० १४३
तिलोयपण्णत्तिसुत्ताणुसारि ।-धवला अ० २५९ ३ सत्प्ररूपणामें तिलोयपण्णत्तिके मुद्रित अंशकी सात गाथायें ज्योंकी त्यों उद्धृत हैं।