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जैनसाहित्य और इतिहास
पणमह जिणवरवसहं गणहरवसहं तहेव गुणवसहं । दट्टण य रिसिवसहं जदिवसहं धम्मसुत्तपाठए वसहं ॥ ५० चुण्णिसरूवंछक्करणसरूवपमाण होदि किं जं तं।
अट्टसहस्सपमाणं तिलोयपण्णत्तिणामाए ॥५१ एवं आयरियपरंपरागए तिलोयपण्णत्तीए सिद्धलोयसरूवनिरूवणपण्णत्ती णाम णवमो महाहियारो सम्मत्तो ।
मैग्गप्पभावणटुं पवयणभत्तिप्पचोदिदेण मया । भणिदं गंथप्पवरं सोहंतु बहुस्सुदाइरिया ॥
तिलोयपण्णत्ती सम्मत्ता।
तिलोयपण्णत्तिके कर्ता पहली गाथासे मालूम होता है कि यह ग्रन्थ यतिवृषभाचार्यका बनाया हुआ है । ये यतिवृषभ आचार्य वही हैं, जिनका उल्लेख इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतारमें किया गया है और जिन्हें कषायप्राभृत नामक द्वितीय श्रुतस्कन्धके चूर्णि-सूत्रोंका कर्ता बतलाया है
पार्वे तयोर्द्वयोरप्यधीत्य सूत्राणि तानि यतिवृषभः। यतिवृषभनामधेयो बभूव शास्त्रार्थनिपुणमतिः ॥ १५५ तेन ततो यतिपतिना तगाथावृत्तिसूत्ररूपेण ।।
रचितानि षट्सहस्रग्रन्थान्यथ चूर्णसूत्राणि ॥१०६ अर्थात् गुणधर आचार्यने कषायप्राभृतको जिन नागहस्ति और आर्य मं९ मुनियोंके लिए व्याख्यान किया था, उन दोनोंके पास यतिवृषभ नामक श्रेष्ठ यतिने उन्हें पढ़ा और फिर उनपर छह हजार श्लोकपरिमाण चूर्णि-सूत्र लिखे ।। १ चुण्णिसरूवत्थ' भी पाठ है।
२ पंचास्तिकायकी अन्तिम गाथा इसीसे बिल्कुल मिलती जुलती है। पूर्वाद्धं तो बिल्कुल एक-सा है
मग्गप्पभावणटं पवयणभत्तिप्पचोदिदेण मया।
भणिदं पवयणसारं पंचत्थियसंगहं सुत्तं ॥ १७३ ३ नागहस्ति और आर्यमंगु नामसे इन्हीं आचार्योंका उल्लेख श्वेताम्बर-परम्परामें भी मिलता है । इसके विषयमें अधिक जाननेके लिए देखो ' धवलाकी भूमिका ।'