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२६ जैन कथा कोष
और मुनिश्री के पैर चाटने लगी। पैरों से रक्त निकलने लगा । रक्त के साथसाथ श्रृगालिनी और उसके बच्चों को माँस का स्वाद भी आने लगा। फिर वह मुनिश्री के पैरों से माँस के टुकड़े तोड़-तोड़कर खाने लगी। पैरों के खाते ही मुनिश्री नीचे गिर गये। यह भी संयोग ही था कि वह श्रृगालिनी मुनि अयवंती सुकुमाल के किसी पूर्वजन्म की पत्नी थी । श्रृगालिनी ने सारा शरीर ही भक्षण कर लिया ।
मुनि समता से मृत्यु को प्राप्त कर नलिनीगुल्म विमान में पैदा हो गये । यद्यपि गुरुदेव ने निष्काम तपस्या करने का आदेश दिया था, पर मुनिजी ने नलिनीगुल्म विमान पाने का संकल्प कर लिया था ।
दूसरे दिन आचार्य के मुँह से 'भद्रा' ने जब मुनिश्री की रोमांचक साधना का वर्णन सुना, तब वह संसार से उद्विग्न हो उठी । भद्रा स्वयं और इकतीस पत्नियाँ दीक्षित हो गईं। केवल एक पत्नी साध्वी नहीं बनी, क्योंकि वह गर्भवती थी। उसके पुत्र पैदा हुआ। उस पुत्र ने अपने पितृ मुनि के प्रति भक्ति दिखाकर उसी स्थान पर एक प्रतिमा स्थापित की जो आगे चलकर महाकाल प्रासाद के रूप में प्रसिद्ध हुआ ।
- दर्शनशुद्धि प्रकरण
२२. अरणिक मुनि
अरणिक ' तगरा' नगर के सेठ 'दत्त' के पुत्र थे। इनकी माता का नाम 'भद्रा' था। एक बार मित्राचार्य नाम के धर्माचार्य से उपदेश सुनकर पिता, पुत्र और माता— तीनों ही दीक्षित हो गये। 'दत्त' मुनि और 'अरणिक' मुनि दोनों ही पिता-पुत्र साथ-साथ रहते थे। पिता का पुत्र के प्रति वात्सल्य सहज ही होता है । भिक्षा के लिए भी पिता अरणिक मुनि को नहीं भेजते और अन्यान्य कार्य भी उनसे न करवाकर स्वयं कर लेते। यों अरणिक मुनि का पालन पर्याप्त प्यार
हो रहा था । इस दुलार-भरे प्यार ने अरणिक मुनि को अधिक आराम - तलबी बना दिया । कार्यजा शक्ति से आने वाली कष्ट - सहिष्णुता अरणिक मुनि में नहीं आ सकी।
कुछ समय के बाद 'दत्त' मुनि दिवंगत हो गये। अब अरणिक मुनि की भिक्षा लाने की बारी आयी। गर्मी की अधिकता, शरीर की सुकुमारता नया-नया प्रसंग पाकर अधिक खिन्नता पैदा करने वाली बन गई। शरीर पसीने से तरबतर हो रहा है। ऊपर से सिर और नीचे से पैर बहुत बुरी तरह झुलस रहे हैं। यों