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जैन कथा कोष २६१ माता 'मरुदेवा' इस युग की प्रथम सिद्ध गति में जाने वाली बनीं।
-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, उसहचरियं
-त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व १ १५२. मल्लिकुमारी के छः मित्र
१. राजा प्रतिबुद्धि 'मल्लिनाथ' भगवान् के छः मित्रों में एक मित्र हुआ 'साकेत' नगरी का महाराज 'प्रतिबुद्धि'। उसकी रानी का नाम पद्मावती और मन्त्री का नाम सुबुद्धि था।
एक बार वह अपनी रानी 'पद्मावती' द्वारा किये गये नागयज्ञ में भाग लेने गया। वहाँ अपूर्व श्रीदामगंडक (माला) को देखकर अतिविस्मित हुआ। मन्त्री से पूछा-'क्या तुमने पहले ऐसी माला देखी है?'
मन्त्री ने कहा—'देव ! विदेहराज की कन्या मल्लि के पास जो माला है, उसके लक्षांश से भी यह तुलनीय नहीं होती।'
राजा ने पुनः पूछ।—बताओ, वह कैसी है?
सचिव ने कहा-राजन् ! उस जैसी दूसरी है ही नहीं, तब भला मैं बताऊँ भी कैसे?
राजा का मन विस्मय से भर गया। मल्लि की ओर वह आकर्षित हो गया। उसने विवाह का प्रस्ताव लेकर दूत को मिथिलापुर की ओर भेज दिया।
२. राजा चन्द्रच्छाया महाराज 'चन्द्रच्छाया' 'चम्पा' नगरी में राज्य करता था। उसी नगरी में 'अर्हन्नक' नाम का एक समुद्री व्यापारी रहता था। एक बार वह यात्रा से वापस लौटकर आया तो दो दिव्य कुंडल राजा को भेंट किये। राजा ने पूछा-'तुम लोग अनेक देशों में घूमते हो। वहाँ तुमने कहीं कोई नयी चीज देखी है?'
अर्हन्नक ने कहा-'स्वामिन् ! इस बार सामुद्रिक यात्रा में देव ने मुझे धर्म से विचलित करने के लिए अनेक उपसर्ग किये। मैं धर्म में अडिग रहा। तब प्रसन्न होकर दो दिव्य कुंडल युगल उसने मुझे दिये। मैंने एक कुंडल युगल महाराज 'कुंभ' को उपहार दिया। उन्होंने अपने हाथों से वे कुंडल अपनी पुत्री 'मल्लि' को पहनाए। उस कन्या को देख मैं अत्यन्त विस्मित हुआ। ऐसा रूप