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३१४ जैन कथा कोष
कुमार अवस्था २५ हजार वर्ष कुल आयु
१ लाख वर्ष राज्यकाल ५० हजार वर्ष चिह्न
हरिण श्री शान्तिनाथ इस चौबीसी के सोलहवें तीर्थंकर तथा पाँचवें चक्रवर्ती हुए। ये हस्तिनापुर के महाराज "विश्वसेन' की महारानी 'अचिरा' के अंगजात थे। सर्वार्थसिद्ध विमान से इनका च्यवन हुआ। जिस समय ये माता 'अचिरा' के गर्भ में आये, उस समय कुरुजांगल प्रदेश में मरी रोग का प्रकोप था। अनेक प्रयत्न करने पर भी रोग शान्त नहीं हो रहा था। परन्तु प्रभु के गर्भ में आते ही सारी बीमारियाँ स्वतः शान्त हो गईं। इसलिए इनका नाम 'शान्तिकुमार' रखा गया। युवावस्था में शान्कुिमार का अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ। इनके चौंसठ हजार रानियां थीं। आयुधशाला में चक्ररत्न पैदा हुआ। छः खण्डों पर अधिकार स्थापित करके चक्रवर्ती बने । ये २५ हजार वर्ष कुमार पद पर तथा ५० हजार वर्ष चक्रवर्ती पद पर आसीन रहे । वर्षीदान देकर संयम स्वीकार किया। उस समय इनके साथ एक हजार अन्य राजा दीक्षित हुए। एक मास तक छद्मस्थ रहे। पीछे केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थ की स्थापना की।
इनके संघ में ६० गणधर थे। २५ हजार वर्ष तक प्रभु ने चारित्र का पालन किया । अन्त में १०० मुनियों के साथ में सम्मेदशिखर पर्वत पर प्रभु ने अनशन किया। एक महीने के अनशन से ज्येष्ठ बदी १३ के दिन प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया।
धर्म-परिवार गणधर ३६ वादलब्धिधारी
२४०० केवली साधु . ४३०० वैक्रियलब्धिधारी
६००० केवली साध्वी ८६०० साधु
६२,००० मनःपर्यवज्ञानी ४००० साध्वी
६१,६०० अवधिज्ञानी ३००० श्रावक
.२,६०,००० पूर्वधर ८३० श्राविका
३,६३,००० -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र
१८३. शालिभद्र राजगृही नगरी में गोभद्र नाम का एक समृद्धिशाली सेठ था। उसकी पत्नी का