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जैन कथा कोष ३८६
परिशिष्टः २
तीर्थंकरों तथा अन्य चरित्रों से सम्बन्धित प्रमुख बातें
(यहाँ तीर्थकरों के व अन्य कथाओं में आयी हुई कुछ बातों को विस्तार के साथ दिया जा रहा है, जो चरित्रों में सिर्फ संकेत मात्र थीं ।
चौंतीस अतिशय
प्रत्येक तीर्थंकर इन चौंतीस अतिशयों से युक्त होते हैं१. केश-रोम श्मश्रु नहीं बढ़ते ।
२. शरीर रोग - रहित रहता है ।
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३. रक्त और मांस दूध के समान श्वेत होते हैं ४. श्वासोच्छ्वास में कमल जैसी मधुर सुगंध होती है । ५. आहार - नीहार विधि नेत्रों से अगोचर होती हैं।
६. सिर के ऊपर आकाश में तीन छत्र होते हैं ।
७. उनके आगे-आगे आकाश में धर्मचक्र चलता है 1
८. उनके दोनों ओर आकाश में श्वेत चामर होते हैं। ६. स्फटिक सिंहासन ।
१०. इन्द्रध्वज आगे-आगे चलता है।
११. जहाँ-जहाँ तीर्थंकर भगवान् ठहरते हैं, वहाँ-वहाँ अशोक - वृक्ष होता है
१२. प्रभा - मण्डल |
१३. तीर्थकरों के आस-पास का भूमि-भाग रम्य होता है ।
१४. कांटे औंधे मुंह हो जाते हैं ।
१५. ऋतुएं अनुकूल रहती हैं।
१६. सुखकारी पवन चलती है।
१७. भूमि की धूल जल- बिन्दुओं से शान्त रहती है ।
१८. पाँच प्रकार के अचित्त फूलों का ढेर लगा रहता है 1
१६-२०. अशुभ शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श का अभाव हो जाता है और शुभ शब्द आदि प्रकट होते हैं।
२१. भगवान् की वाणी एक योजन तक समान रूप से सुनाई देती है T २२. भगवान् का प्रवचन अर्धमागधी भाषा में होता है 1