Book Title: Jain Katha Kosh
Author(s): Chatramalla Muni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh prakashan

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Page 409
________________ ३६२ जैन कथा कोष २७. अद्भुत अर्थ-रचना में सक्षम | २८. विलम्ब दोष रहित। २६. विभ्रम दोष रहित। ३०. विचित्र अर्थ वाली। ३१. सामान्य वचन से कुछ विशेषता वाली । ३२. वस्तु-स्वरूप का साकार वर्णन प्रस्तुत करने में समर्थ । ३३. सत्त्व व ओजयुक्त। ३४. स्व-पर को खिन्न नहीं करने वाली। ३५. विवक्षित अर्थ को सम्यक् व पूर्णरूप से सिद्ध करने वाली। -समवायांग सूत्र, ३५ चौदह शुभ स्वप्न तीर्थकर का जीव जब माता के गर्भ में आता है तो माता चौदह शुभ स्वप्न देखती है1. गज 8. ध्वजा 2. वृषभ 9. कुम्भ कलश 3. सिंह 10. पद्म सरोवर 4. लक्ष्मी 11. क्षीर समुद्र 5. पुष्पमाला 12. देव विमान 6. चन्द्र 13. रत्न राशि 7. सूर्य 14. निर्धूम अग्निशिखा। -कल्पसूत्र, सूत्र ३३ बीस स्थान तीर्थकर रूप में जन्म लेने से पहले तीर्थंकरों की आत्मा पूर्वजन्मों में अनेक प्रकार के तप आदि का अनुष्ठान कर तीर्थकर नामकर्म का उपार्जन करता है। वह बीस स्थानों में किसी भी स्थान की उत्कृष्ट आराधना कर तीर्थकर नामकर्म बांधती है। वे बीस स्थान इस प्रकार हैं १. अरिहंत की भक्ति। २. सिद्ध की भक्ति।

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