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३७६ जैन कथा कोष . .
और 'भद्रा' वहाँ आये। 'हरिकेशी' को देखकर वे वन्दन करने लगे। 'भद्रा' ने सबको समझाया 'तुम लोग ऐसे मुनि की निन्दा क्यों करते हो? मुनि तो बहुत प्रतापी साधक तथा समताशील हैं।' तब ये सब शान्त हुए। अपने किये पर अनुताप करने लगे, तब यक्ष चला गया।
मुनि ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा—'यक्ष ने यह सारा किया है। मेरा हाथ इसमें बिल्कुल नहीं है।
तब तक सब की आंख खुल..चुकी थीं। अत्याग्रह कर मुनि को आहार दिया। मुनि ने अपने एक मास के बप की पारणा किया। सुपात्रदान की महिमा से चारों ओर 'अहोदानं' की ध्वनि आने लगी। 'हरिकेशी' मुनि ने उनको भी उपदेश दिया।
चाण्डाल-कुल में उत्पन्न 'हरिकेशी' मुनि ने अपनी साधना के बल पर केवलज्ञान प्राप्त किया और सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। .
-उत्तराध्ययन १२
२१८. हरिराजा 'कौशाम्बी' नगरी में 'सुमुख' नाम का राजा राज्य करता था। एक दिन वह क्रीड़ा करने गया। उस समय 'वीरक' माली की पत्नी 'वनमाला' को राजा ने देखा। देखते ही राजा उसे पाने के लिए ललचा उठा। कामान्ध बने राजा ने 'वनमाला' का अपहरण करवा लिया और 'वीरक' को धक्का देकर निकाल दिया।
'वीरक' को यह सारा दृश्य देखकर बहुत दुःख हुआ। अपनी पत्नी के वियोग में पागल बना वह नगर में घूमने लगा। 'हा वनपाला ! हा वनमाला! करता है, परन्तु उसका दु:ख मिटाने वाला कौन? ____एक दिन की बात, 'वीरक' विलाप करता हुआ महलों के नीचे से गुजरा। ऊपर महलों में 'वनमाला' को लिये महाराज 'समुख' बैठा था। ज्योंही उसके कान में 'वनमाला' का नाम पडा, 'वीरक' को देखा, सहसा उसकी भावना बदली। सोचा-मैंने उसकी पत्नी का हरण करके किया तो सचमुच अन्याय ही। इतने में अकस्मात् बिजली गिरी। वे दोनों मरकर 'हरिवर्ष क्षेत्र' में युगल रूप में पैदा हुए।