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३३४ जैन कथा कोष
एक दिन 'समुद्रपाल' अपने महल के झरोखे में बैठा था। वहाँ से उसने नगरी की सड़क पर एक चोर को बंधा हुआ ले जाते देखा। देखते ही समुद्रपाल चौंका और सोचा–हन्त ! कैसे कर्मों का परिणाम भोगना पड़ता है।
चिन्तन कुछ गहराई में गया। उसे जाति-स्मरणज्ञान हो गया। माता-पिता की आज्ञा लेकर समुद्रपाल संयमी बन गया। सिंह की भांति उसने संयम का पथ स्वीकार किया और सिंह की भांति ही उसका परिपालन किया। ___ संयम की विशुद्ध आराधना के बल पर केवलज्ञानी बनकर निर्वाण प्राप्त किया।
-उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन २१
१६७. सात निन्हव जैन परम्परा की वेशभूषा में रहते हुए भी जैन दर्शन की किसी बात का अन्यथा प्रतिपादन करने वाले को निन्हव कहा गया है। वे सात हुए हैं। दो भगवान् के केवलज्ञान होने के बाद तथा पाँच प्रभु के निर्वाण के बाद। पहला निन्हव बहुरतवाद का प्ररूपक जमाली था। इसकी कथा 'जमाली' नाम से पहले आ गई है। शेष छह निन्हवों की कथा यहाँ दी जा रही है। दूसरा निन्हव तिष्यगुप्त था। वह जीव प्रादेशिकवाद का प्ररूपक था। उसकी कथा इस प्रकार हैतिष्यगुप्त
आचार्य 'वसु' विहार करते हुए राजगृह में आये। गुणशीलक उद्यान में ठहरे। वे चौदहपूर्वी थे। उसमें प्रसंग आया-गौतम के प्रश्न पर भगवान्
१. जमाली-भगवान् महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के १४ वर्ष के बाद । बहुरतवाद का
प्ररूपक। २. तिष्यगुप्त-भगवान् महावीर के कैवल्य-प्रापित के १६ वर्ष बाद। जीव प्रादेशिक
वाद का प्ररूपक। ३. आचार्य आषाढ़ के शिष्य-महावीर-निर्वाण के २१४ वर्ष बाद । अव्यक्तवाद के
प्ररूपक। ४. अश्वमित्र—महावीर-निर्वाण के २२० वर्ष बाद । समुच्छेदवाद के प्ररूपक। ५. आचार्य गंग-महावीर-निर्माण के २२८ वर्ष बाद । द्वैक्रियवाद के प्ररूपक। ६. रोहगुप्त—महावीर-निर्वाण के ५५४ वर्ष बाद । त्रैराशिकवाद के प्ररूपक। ७. गोष्ठामाहिल-महावीर-निर्वाण के ५८४ वर्ष बाद । अबद्विकवाद के प्ररूपक।