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जैन कथा कोष ३६७
दृढधर्मिणी सुलसा ने अन्त में सभी पापों की आलोचना करके समाधिमरण प्राप्त किया और स्वर्ग में गयी । वहाँ से च्यवन करके आने वाली चौबीसी में निर्मम नाम का पन्द्रहवां तीर्थकर होगी।
जन्म स्थान
पिता
माता
जन्म तिथि
कुमार अवस्था
राज्यकाल
२१२. सुविधिनाथ भगवान्
सारिणी
काकन्दी सुग्रीव
रामा
- आवश्यकचूर्णि, पत्र सं. १६४
मार्गशीर्ष कृष्णा ५
५० हजार पूर्व
५० हजार पूर्व
२८ पूर्वाग
दीक्षा तिथि केवलज्ञान तिथि
निर्वाण तिथि
चारित्र पर्याय
कुल आयु चिह्न
मार्गशीर्ष शुक्ला ६
कार्तिक शुक्ला ३
भादवा सुदी ६
२८ पूर्वांग कम
१ लाख
२ लाख पूर्व
मकर
काकन्दी नगर के स्वामी 'सुग्रीव' की पटरानी का नाम था 'रामा' | महारानी 'रामा' के उदर में नौवें आनत देवलोक से च्यवन करके प्रभु आये मार्गशीर्ष बदी ५ को प्रभु का जन्म हुआ । गर्भ में आते ही महारानी 'रामा' ने सभी विधियों में विशेष कुशलता प्राप्त की। इसलिए प्रभु का नाम 'सुविधिनाथ' दिया तथा पुष्प के दोहद से प्रभु के दाँत आये। इसलिए इनका दूसरा नाम 'पुष्पदंत' भी रखा गया । युवावस्था में अनेक राजकन्याओं के साथ इनका विवाह हुआ। राजगद्दी पर आरूढ़ हुए। वर्षीदान देकर एक हजार राजाओं के साथ मार्गशीर्ष बदी ६ को संयम स्वीकार किया। चार मास छद्मस्थ रहे। फिर केवलज्ञान प्राप्त किया, तीर्थ की स्थापना की। आपके संघ में 'वराह' आदि गणधर थे ।
अन्त में एक हजार मुनियों के साथ सम्मेदशिखर पर अनशन किया। एक महीने का अनशन आया । भादवा सुदी ६ के दिन प्रभु का निर्वाण हुआ। ये वर्तमान चौबीसी के नौवें तीर्थकर हैं।
प्रभु के निर्वाण के बाद कुछ काल तक तो धर्मशासन चलता रहा, किन्तु बाद में काल-दोष के कारण श्रमणों का अभाव हो गया। लोग श्रावकों से ही