Book Title: Jain Katha Kosh
Author(s): Chatramalla Muni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh prakashan

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Page 387
________________ जैन कथा कोष १४. कानों में तीक्ष्ण मुख वाले पक्षियों के पिंजड़े बांधे, जिससे उन पक्षियों ने भगवान् को घायल कर दिया । ३७० १५. चाण्डाल का रूप धारण कर दुर्वचनों से तर्जना की। १६. दोनों पैरों के बीच में आग जला दी । १७. आंधी चलाकर दुर्दान्त कष्ट दिया। १८. गोल वायु चलाकर उनका शरीर चक्रवत् घुमाया । १६. लोहे का गोला भगवान् के मस्तक पर गिराया । २०. रात्रि रहते दिन बना दिया। लोग आकर कहने लगे- ' अब क्यों बैठे हो, चलो यहाँ से । देखो, कितना शूरज चढ़ आया है?' परन्तु भगवान् ने अपने अवधिज्ञान से जान लिया कि अभी रात्रि है और ध्यानस्थ रहे। 1 इस घटना से इन्द्र रुष्ट हुआ। उसने संगम पर वज्र प्रहार किया। संगम छह महीने तक चिल्लाता रहा। स्वर्ग से निकाल देने पर, मेरु पर्वत की चूला पर रहने लगा । - आवश्यकचूर्णि जन्मस्थान माता पिता जन्मतिथि कुमार अवस्था राज्यकाल २१४. संभवनाथ भगवान् सारिणी श्रावस्ती सेना जितारि मार्गशीर्ष सुदी १४ १५ लाख पूर्व ४४ लाख पूर्व ४ पूर्वाग दीक्षातिथि केवलज्ञान चारित्र पर्याय निर्वाण कुल आयु चिह्न मार्गशीर्ष सुदी १५ कार्तिक बदी ५ ४ पूर्वाग कम १ लाख पूर्व चैत्र सुदी ५ ६० लाख पूर्व अश्व भगवान् 'संभवनाथ' वर्तमान चौबीसी के तीसरे तीर्थकर हैं। ये 'सावत्थी' नगरी के महाराज 'जितारि' की महारानी 'सोनादेवी' के उदर में सप्तम ग्रैवयक से च्यवन करके आये । भगवान् का जन्म मार्गशीर्ष सुदी चौदस को हुआ । माता-पिता ने पुत्र का नाम दिया 'संभवनाथ' । युवावस्था में अनेक राजकन्याओं के साथ इनका पाणिग्रहण हुआ। पिताश्री की दीक्षा के बाद राज्यपद पर आये । वर्षीदान देकर प्रभु ने मार्गशीर्ष सुदी १५

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