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३५० जैन कथा कोष
इस प्रकार जितना भी ज्ञान आज अंग शास्त्रों में मिलता है, वह सब सुधर्मा स्वामी प्रणीत है। अतः सुधर्मा स्वामी का हम पर बहुत उपकार है।
-आवश्यक चूर्णि
२०४. सुपार्श्वनाथ भगवान्
सारिणी जन्मस्थान
वाराणसी दीक्षातिथि जेठ सुदी १३ पिता
प्रतिष्ठ केवलज्ञान फाल्गुन बदी ६ माता पृथ्वी चारित्र पर्याय
२० पूर्वांग कम जन्मतिथि जेठ सुदी १२
१ लाख पूर्व कुमार अवस्था ५ लाख पूर्व निर्वाण
फाल्गुन बदी ७ राज्यकाल १४ लाख पूर्व कुल आयु २० लाख पूर्व २० पूर्वांग चिह्न
स्वस्तिक 'सुपार्श्वनाथ' 'वाराणसी' नगरी के महाराज प्रतिष्ठ' की महारानी 'पृथ्वी' के पुत्र थे। छठे ग्रैवेयक से च्यवन करके यहाँ ज्येष्ठ सुदी १२ को प्रभु का जन्म हुआ। इन्द्रों द्वारा जन्मोत्सव के उपरान्त पिता ने जन्मोत्सव करके पुत्र का नाम 'सुपार्श्वनाथ' रखा। ___ युवावस्था में अनेक राजकन्याओं के साथ कुमार का पाणिग्रहण हुआ। कुछ समय राज्यासन पर रहे। वर्षीदान देकर एक हजार राजाओं के साथ ज्येष्ठ सुदी १३ के दिन प्रभु ने संयम स्वीकार किया। नौ महीने छद्मस्थ रहकर प्रभु ने केवलज्ञान प्राप्त किया। प्रभु के ६५ गणधर थे। सबसे बड़े गणधर का नाम था 'विदर्भ'। अन्त में सम्मेदशिखर पर्वत पर एक मास के अनशनपूर्वक ५०० मुनियों के साथ निर्वाण प्राप्त किया। उस दिन फाल्गुन बदी ७ थी। ये इस चौबीसी के सातवें तीर्थकर हैं।
धर्म-परिवार गणधर - ६५ वादलब्धिधारी
८४०० केवली साधु
११,००० वैक्रियलब्धिधारी १५,३०० केवली साध्वी २२,०००
३,००,०००