Book Title: Jain Katha Kosh
Author(s): Chatramalla Muni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh prakashan

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Page 375
________________ ३५८ जैन कथा कोष बहनोई 'अनन्तवीर्य' से अनुचित सम्बन्ध हो गया। वहाँ उसके पुत्र भी हुआ। उसे 'जमदग्नि' अपने आश्रम में ले आये, परन्तु परशुराम से वह सहन नहीं हो सका। उसने क्रुद्ध होकर पुत्र सहित मां का वध कर दिया। ___ 'अनन्तवीर्य' को यह घटना सुनकर बहुत क्रोध आया। उसने सारा आश्रम ही तुड़वा डाला | परशुराम कब चुप रहने वाला था ! उसने अनन्तवीर्य को ही मार डाला। ___अब ‘कृतवीर्य' राजा हुआ। उसने 'जमदग्नि' को मार डाला। इस घटना से 'परशुराम' समूची क्षत्रिय जाति पर ही कुपित हो उठा। उसने जितने भी क्षत्रिय मिले, सबको मौत के घाट उतार दिया। ‘कृतवीर्य' को भी मारकर हस्तिनापुर के सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया। 'कृतवीर्य' की पत्नी 'तारा' उस समय गर्भवती थी। पति की मृत्यु का संवाद सुनकर वह वन में चली गई। एक दयालु तापस ने आश्रम में उसे छिपा दिया। वह भूमिघर में रहने लगी। 'तारा' के पुत्र हुआ। भूमि पर हुआ, भूमिघर में हुआ, मिट्टी अधिक खाता था इसलिए उसका नाम 'सुभूम' पड़ गया। 'सुभूम' होनहार और बलशाली लगता था। 'हस्तिनापुर' पर 'परशुराम' का अधिकार था। वह क्षत्रिय को फूटी आँखों भी नहीं देखना चाहता था। सात बार सारी पृथ्वी को उसने नि:क्षत्रिय बना दिया। क्षत्रियों को खोजता हुआ एक बार 'परशुराम' उस आश्रम में भी पहुंचा, जहाँ 'सुभूम' छिपा हुआ पल रहा था। उसके 'परशु' की यह विशेषता थी कि क्षत्रिय का आभास होते ही 'परशु' चमकने लग जाता था। परशुराम को यहाँ कुछ सन्देह हुआ। कुलपति से पूछा भी, परन्तु कुलपति ने बात को टालते हुए कहा-"तापस क्षत्रिय ही तो होते हैं, अन्यथा तुम्हारे में वह क्षत्रियोचित तेज कहाँ से आता?" 'परशुराम' इस उत्तर से सन्तुष्ट होकर चला गया। क्षत्रियों के जितने भी प्रमुख राजाओं को 'परशुराम' ने मारा, उन सबकी दाढ़ाएं उसने एक थाल में सजा रखी थीं। प्रसंगवश उसने जब अपनी मृत्यु के सम्बन्ध में एक नैमित्तिक से पूछा तब उसने बताया जिसके देखते ही यह दाढ़ाओं वाला थाल खीर से भर जायेगा, जो उसे खायेगा, उसी के हाथों से तुम्हारी मृत्यु होगी। 'परशुराम' ने पता लगवाने के लिए दानशाला खुलवा दी। उसके द्वार पर वह थाल रखवा दिया। पास में एक सिंहासन भी रखवा दिया। 'सुभूम' बड़ा हुआ। निमित्त-विशेषज्ञों से चक्रवर्ती होने का संवाद सुनकर

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