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जैन कथा कोष ३३७ वर्तमान समय में उत्पन्न सभी जीव विचिछन्न हो जायेंगे तो सुकृत-दृष्कृत का वेदन कौन करेगा?
समाधान देते गुरु ने कहा—यह नयवाक्य है। पर्याय की अपेक्षा से सभी जीव नाशवान हैं। पर्याय से नष्ट हो भी जायेंगे, पर द्रव्य रूप में स्थिर रहेंगे। पर अश्वमित्र अपने हठ पर अड़ा रहा। बहुत-बहुत समझाने पर भी नहीं समझा, तब उसे संघ से अलग कर दिया।
अश्वमित्र अपने समुच्छेदवाद का प्रसार करता हुआ कांपिल्यपुर में आया। वहाँ खण्डरक्षा नाम के श्रावक थे जो चुंगी अधिकारी थे। उन्होंने उसे समझाने के लिए कुछ साधुओं को पीटा। उसने कहा- श्रावक होते हुए भी इस प्रकार साधुओं को पीटना क्या समुचित है?
श्रावकों ने कहा-आपके मतानुसार वे श्रावक नष्ट (विच्छिन्न) हो गये और वे साधु भी विनष्ट हो गये जो पीटे गये।
अश्वमित्र को अब अपनी भूल समझ में आ गई। प्रतिबुद्ध होकर संघ में पुनः सम्मिलित हो गये। आचार्य भंग __ 'उल्लुका' नदी के इस किनारे एक खेड़ा था और उस किनारे था उल्लुकातीर नाम का नगर । वहाँ आचार्य 'महागिरि' के शिष्य आचार्य 'धनगुप्त' रहते थे। उनके शिष्य का नाम था 'भंग'। वे भी आचार्य थे। आचार्य 'भंग' उस खेड़े में वास करते थे। ___एक बार शरद् ऋतु में अपने आचार्य को वन्दना करने आचार्य 'गंग' चले। वे उल्लुका नदी में उतरे । वे गंजे थे, ऊपर सूर्य के ताप से सिर को गर्मी लग रही थी और नीचे पैरों को जल ठंडा लग रहा था। उन्होंने सोचा—'आगमों में कहा गया है कि एक समय में एक ही क्रिया का वेदन होता है, दो का नहीं। किन्तु मुझे प्रत्यक्षतः एक साथ दो क्रियाओं का अनुभव हो रहा है।' अपनी धारणा उन्होंने गुरु के समक्ष रखी। गुरु ने कहा—'वत्स ! एक समय में एक ही क्रिया का वेदन होता है, दो का नहीं। मन का क्रम बहुत सूक्ष्म है, अतः हमें इसकी पृथकता का पता नहीं लगता | छद्मस्थ का कोई भी अनुभव असंख्यात समय बिना नहीं होता, यानी छद्मस्थ का प्रत्येक वेदन असंख्यात समय का ही होता है।' गुरु के बहुत-बहुत समझाने पर भी वे नहीं समझे, तब उन्हें संघ से अलग कर दिया गया। ...