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जैन कथा कोष ३१६ कुमार अवस्था २५ हजार पूर्व कुल आयु १ लाख पूर्व राज्यकाल ५० हजार पूर्व चिह्न
श्रीवत्स 'भद्दिलपुर' नगर के महाराज 'दृढ़रथ' की महारानी 'नन्दा' देवी के उदर में 'शीतलनाथ' भगवान् दसवें प्राणत स्वर्ग से च्यवन करके आए। माघ बदी १२ को प्रभु का जन्म हुआ। प्रभु जब माता के उदर में थे, तब महाराज 'दृढ़रथ' का अत्यधिक गर्म शरीर भी महारानी के कर-स्पर्श से शीतल हो गया। इसलिए पुत्र का नाम 'शीतलनाथ' रख दिया। प्रभु जब युवावस्था में पहुँचे, तब स्वयं की इच्छा न होते हुए भी पिता के आग्रह से पाणिग्रहण किया। पच्चीस हजार पूर्व की आयु में राज्य सिंहासन पर विराजमान हुए। पचास हजार पूर्व तक राज्य का उपभोग किया। पीछे वर्षीदान देकर माघ बदी १२ को प्रभु एक हजार राजाओं के साथ संयमी बने । तीन महीनों के बाद केवलज्ञान प्राप्त किया एवं तीर्थ की स्थापना की। प्रभु ने गण में ८१ गणधर थे।
अन्त में प्रभु ने एक हजार मुनियों के साथ सम्मेदशिखर पर अनशन किया। एक मास के अनशन में वैशाख बदी २ को प्रभु ने निर्वाण प्राप्त किया। ये वर्तमान चौबीसी के दसवें तीर्थंकर हैं।
धर्म-परिवार गणधर ८१ वादलब्धिधारी
५८०० केवली साधु ७००० वैक्रियलब्धिधारी
१२,००० केवली साध्वी १४,००० साधु
१,००,००० मनःपर्यवज्ञानी ७५०० साध्वी
१,२०,००० अवधिज्ञानी ७२०० श्रावक
२,८६,००० पूर्वधर १४०० श्राविका
४,५८,००० -त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, पर्व ३/८
१८७. शंख-पोखली ; 'सावत्थी' नगरी में धनाढ्य, धर्मिष्ठ, क्षमामूर्ति और भगवान् महावीर ने . अनन्य उपासक दो श्रावक थे जिनका नाम था शंख और पोखली।'
१. इसे शतक भी कहते हैं।